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क्या वेदान्त को अनेकान्त किसी अंश में
स्वीकार्य हो सकता है?
-डॉ. दयानन्द भार्गव
जिन दार्शनिकों ने अनेकान्त का खण्डन किया उनमें बौद्ध और वेदान्ती मुख्य हैं। प्रस्तुत लेख में हम यह विचार करेंगे कि यद्यपि आचार्य शंकर से लेकर डॉ. राधाकृष्णन तक वेदान्त के आचार्यों ने अनेकान्तवाद का खण्डन किया है तथापि क्या वेदान्त दर्शन की दृष्टि में अनेकान्तवाद सर्वथा अस्वीकार्य है अथवा किन्हीं अंशों में वेदान्त को भी अनेकान्त स्वीकार्य है अथवा स्वीकार्य हो सकता है? हम यह भी विचार करेंगे कि यदि वेदान्त को भी किन्हीं अंशों में अनेकान्त सिद्धान्ततः स्वीकार्य हो सकता है तो व्यावहारिक स्तर पर इस स्थिति का क्या लाभ उठाना सम्भव है? 1. वेदान्तदर्शन श्रोत दर्शन होने के नाते श्रुति को परम प्रमाण मानता है।
विचारणीय बिन्दु यह है कि श्रुति अनेकान्त के प्रति खण्डनात्मक दृष्टि रखती है अथवा मण्डनात्मक दृष्टि अथवा श्रुति का अनेकान्त के प्रति माध्यस्थभाव है। हम अपनी खोज के आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि श्रुति का अनेकान्त के प्रति मण्डनात्मक दृष्टिकोण है। जैन दर्शन के प्रामाणिक व्याख्याता आचार्य महाप्रज्ञ ने अनेकान्त के चार नियम माने हैं। निम्न तालिका में हम इन चार नियमों की आचार्य महाप्रज्ञ द्वारा दी गई व्याख्या देंगे और उसके साथ ही इन्हीं चार नियमों की श्रुति में दी गई व्याख्या भी देंगे। इस तालिका से यह स्पष्ट हो जाएगा कि किस प्रकार श्रुति अनेकान्त के प्रति मण्डनात्मक दृष्टिकोण रखती है :
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- तुलसी प्रज्ञा अंक 113-114
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