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है किन्तु संस्कार निर्माण के लिए कुछ भी नहीं है अथवा कुछ है तो वह नगण्य है। इस समस्या पर समाज, राजनीति और शिक्षा क्षेत्र के चिन्तकों और कार्यकर्ताओं का समन्वित ध्यान आकृष्ट होना चाहिए। इस विषय की ओर ध्यान आकृष्ट करने के लिए जीवन-विज्ञान का विकल्प प्रस्तुत किया गया है। जहां जहां उसके प्रयोग हुए हैं, वहां वहां लक्ष्य की पूर्ति में सफलता मिली है। छात्र-छात्राओं में अहिंसा, मानसिकशांति, तनावमुक्ति, नशामुक्ति, पारस्परिक सामंजस्य और स्वास्थ्य का विकास देखने को मिला है। यह अध्यात्म और विज्ञान के समन्वय का प्रयोग है। कोरा अध्यात्म और कोरा विज्ञान दोनों एकांगी है। वे अलग-अलग रहकर जीवन की समग्रता को सिंचन नहीं दे सकते। जीवन के सर्वांगीण विकास की दृष्टि से इन दोनों का समन्वय बहुत उपयोगी हो सकता है।
INITITI
V तुलसी प्रज्ञा अंक 111-112
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