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श्रद्धाञ्जलि
जैन विश्वभारती मान्य विश्वविद्यालय के कुलाधिपति
श्री श्रीचन्दजी रामपुरिया का स्वर्गवास
जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के कुलाधिपति श्रीमान् श्रीचन्दजी रामपुरिया का दिनांक 27 जुलाई, 2001 को कोलकाता में देहावसान हो गया। वे 94 वर्ष के थे। सुजानगढ़ (राजस्थान) में जन्मे रामपुरियाजी ने बी.ए., एल.एल.बी. करने के पश्चात् कोलकाता में वकालात प्रारम्भ की। किन्तु वंशपरम्परा से मिले आध्यात्मिक संस्कारों और आचार्यश्री तुलसी की प्रेरणा और निकट सन्निधि से उनकी जीवनधारा धार्मिक एवं सामाजिक गतिविधियों की ओर उन्मुख हो गई। उन्होंने जैन-दर्शन एवं तेरापंथ-धर्म के सिद्धान्तों का तलस्पर्शी अध्ययन किया। भगवान महावीर, गीता, गांधी और भिक्षु पर कलम चलाई, उनके सिद्धान्तों, उपदेशों और विचारों का अनुसन्धान, अनुशीलन एवं सम्पादन किया। अहिंसा, अनेकान्त आदि विषयों पर देश एवं विदेश के उद्भट विद्वानों द्वारा लिखित सामग्री का आपने अद्भुत संकलन किया। जैन विश्वभारती के वर्द्धमान ग्रन्थागार में संग्रहीत दुर्लभ हजारों अमूल्य एवं अप्राप्य ग्रन्थ उनके संग्रह कौशल के जीवन्त प्रमाण है। ____ आपकी विद्वत्ता का अंकन कर जैन समाज ने आपको जैन विद्या मनीषी', 'जैन रत्नम', जैसे अलंकरणों से अलंकृत किया । तेरापंथ समाज के उत्थान एवं विकास में आप द्वारा किये गये विशिष्ट प्रयास के लिए समाज ने अपने सर्वोच्च अलंकरण 'समाजभूषण' से आपको विभूषित किया । तेरापंथ दर्शन एवं आचार्य भिक्षु के सिद्धान्तों के प्रतिपादन में आपकी प्रखर क्षमता का अंकन कर आचार्यश्री तुलसी ने आपको तेरापंथ प्रवक्ता के सम्बोधन से सम्बोधित किया।
छोटा कद, दुबली पतली काया किन्तु अदम्य आत्मबल, सतत् अध्यवसाय, बौद्धिक विनयशीलता एवं जागृत प्रज्ञा के धनी श्री रामपुरियाजी का ग्रन्थों से घिरा एक निर्ग्रन्थ व्यक्तित्व था। उनकी संवेदनशीलता, परोपकारिता, साधर्मिकता, व्यवहार कुशलता और सहयोगिता ने पास आने वाले हर व्यक्ति को स्नेह और सम्मान दिया बिना जाति, धर्म, पन्थ, वर्ग, लिंग का भेद किए। उन्होंने जीवनभर अनेकान्त का जीवन जीया । उनमें तर्क और श्रद्धा का समन्वय था । अनेक उपाधियों से जुड़कर भी अहं उन्हें छू नहीं सका था । ज्ञानवृद्ध एवं अनुभववृद्ध श्री रामपुरियाजी का सम्पूर्ण जीवन जैन समाज के लिए प्रेरणा और श्रद्धा का सेतुबन्ध बन गया। ___आपने जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के अध्यक्ष एवं मंत्री पद पर अनेक वर्षों तक आसीन रहकर गुरुत्वपूर्ण दायित्व निभाया। जैन विश्वभारती की स्थापना, विकास और उसकी गतिविधियों के संचालन में आपका आत्मीय योगदान रहा। आप जैन विश्वभारती संस्थान के कुलपति रहे । जैन विश्वभारती संस्थान मान्य विश्वविद्यालय की परिकल्पना, स्थापना और उसके अर्थतन्त्र की समृद्धता में आपका अद्वितीय योगदान रहा। आप इस विश्वविद्यालय की स्थापना से लेकर अन्तिम समय तक इसके कुलाधिपति पद को सुशोभित करते रहे। ____ आपके देहावसान से पूरा जैन शासन, तेरापंथ धर्मसंघ और संस्थान-परिवार एक अप्रतिम व्यक्तित्व के कुशल नेतृत्व एवं श्लाघनीय सेवाओं से वंचित हो गया। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) परिवार अपने कुलाधिपति की दिवंगत आत्मा के प्रति सादर श्रद्धाञ्जलि अर्पित करता है और उनके आध्यात्मिक ऊर्ध्वारोहण के लिए मंगल कामना करता है।
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