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उबाला जाता है तथा उसके तुरन्त बाद ही उसे बहुत अधिक ठण्डा कर दिया जाता है। दूध को उबालने से उसमें मौजूद बैक्टेरिया नष्ट हो जाते हैं तथा शीघ्र ही ठण्डा कर देने से नये बैक्टेरिया पैदा नहीं हो पाते हैं। सामान्यतः दूध डेरियों में मात्र उस दूध का ही पास्चीकरण करा जाता है जिसमें बैक्टेरिया की संख्या 250 पी.पी.एम. (पार्ट्स पर मिलियन) हो । यदि दूध में इससे अधिक बैक्टेरिया हों तो उसे इस्तेमाल नहीं करा जाता है। दूध को सुरक्षित बनाये रखने के लिए डेरियों को बिल्कुल स्वच्छ रखा जाता है जिससे किसी भी प्रकार के फूड़-पोयजिंग की संभावना से बचा जा सके। इस प्रकार डेरी के दूध को ग्रहण करने में कोई दोष नजर नहीं आता है तथापि जैन धर्म के अनुसार यदि दूध को 48 मिनिट के अन्दर गर्म न किया जाय तो उसमें अनन्त सम्मूर्च्छन जीव पैदा हो जाते हैं। यदि दूध को तुरन्त ही गर्म कर •लिया जाय तो इन जीवों को पैदा होने से रोका जा सकता है।
सन्दर्भ ग्रन्थ
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'शान्ति पथ प्रदर्शन', ले. क्षु. जिनेन्द्र वर्णी
‘Scientific Contents in Prakrit Canons' by Dr. N.L. Jain
'Jain Biology' by Dr. S.C. Sikdhar
'आस्था और अन्वेषणा', संपादक - सुरेश जैन (विशेष दृष्टव्य - डॉ. अशोक कुमार जैन का लेख )
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NW तुलसी प्रज्ञा अंक 111-112
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