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एल्गे या काई एककोशिय या बहकोशिय दोनों प्रकार की हो सकती हैं। इनकी लम्बाई माइक्रोन से लेकर कई मीटर तक हो सकती है। बैक्टेरिया की तरह ये भी प्रायः सभी प्रकार के वातावरण में पाये जाते हैं। ये कुछ जलचर प्राणियों के साथ-साथ भी वृद्धि करती हैं। कुछ एल्गे, जिनकी कोशिकायें एक जैसी होती हैं, कॉलोनी भी बनाती हैं तथा विभाजन के बाद वृद्धि करती है। कुछ एल्गे अनेक प्रकार की कोशिकाओं की कॉलोनियों से युक्त होती हैं तथा ये अलग-अलग कोशिकायें अलग-अलग कार्य करती हैं। कई एल्गे कुछ विशिष्ट रंगों से युक्त होती हैं, जैसे—लाल, भूरी तथा हरी। (2.5) बैक्टेरिया
बैक्टेरिया एक-कोशिय सूक्ष्म जीव होते हैं। ये अलग-अलग शक्ल तथा साइज में पाये जाते हैं। इनमें से कुछ स्वतन्त्र कोशिका के रूप में, कुछ कोशिकाओं के समूह के रूप में तथा कुछ कोशिकाओं की लड़ी के रूप में रहते हैं। इनकी कोशिकाओं की ऊपरी सतह कठोर कवच युक्त होती है। अधिकतर बैक्टेरिया 0.3 से 2 माइक्रोन साइज के होते हैं तथा उन्हें सूक्ष्मदर्शी द्वारा ही देखा जा सकता है। कुछ वैज्ञानिक बैक्टेरिया को वनस्पति की श्रेणी में रखते हैं तथा कुछ वनस्पति तथा पशु की श्रेणी में ।
बैक्टेरिया हजारों प्रकार के होते हैं। उनमें से अधिकतर मनुष्यों के लिए हानिकारक होते हैं। काफी संख्या में बैक्टेरिया मनुष्य के शरीर के अन्दर भी पाये जाते हैं। लेकिन वे नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। बैक्टेरिया की कुछ प्रजातियाँ बीमारी फैलाती हैं तथा कुछ प्रजातियाँ लाभकारक भी होती है। (2.5.1) बैक्टेरिया कहाँ रहते हैं?
बैक्टेरिया प्रायः सभी प्रकार के वातावरण में तथा सभी स्थानों पर रह सकते हैं। कुछ बैक्टेरिया तो उन विषम परिस्थितयों में भी जीवित रह सकते हैं जिनमें मनुष्य भी जीवित न रह सके । हवा, पानी तथा मिट्टी की ऊपरी सतह में भी बैक्टेरिया मिलते हैं। कुछ बैक्टेरिया हमारे पाचन-तन्त्र एवं श्वसन तंत्र में भी रहते हैं तथा कुछ मनुष्य तथा पशुओं की त्वचा के नीचे भी रहते हैं।
कुछ बैक्टेरिया ऑक्सीजन में जीवित रहते हैं तथा कुछ ऑक्सीजन के बिना भी जीवित रह सकते हैं। कुछ अन्य बैक्टेरिया ऑक्सीजन की उपस्थिति में जीवित नहीं रह सकते हैं।
कुछ बैक्टेरिया हवा, पानी तथा भोजन के अभाव में एक मोटा कवच बना लेते हैं तथा स्वयं को जीवित रख पाते हैं। इस नमी कवच के चारों ओर उपस्थित कोशिका तत्व नष्ट हो जाता है तथा वे स्वयं निष्क्रिय हो जाते हैं, इन्हें बैक्टेरिया के स्पोर कहते हैं। ये स्पोर दसों तुलसी प्रज्ञा जनवरी-जून, 2001 SMS
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