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________________ है। यद्यपि केंचुआ तथा जोंक अमीबा से उच्च श्रेणी के जीव हैं, लेकिन ये ऑक्सीजन का अवशोषण अपनी त्वचा द्वारा करते हैं। (2.2) युग्लीना प्रोटिस्टा सजीवों का एक ऐसा वर्ग है जो वनस्पति एवं पशुओं के बीच का है। युग्लीना उनमें से एक है। यह ताजे-स्वच्छ जल एवं गर्म वातावरण में मिलता है। यह वृक्षों की तरह स्वयं अपना भोजन तैयार करता है। साथ ही इसके मुँह भी होता है। यह मुँह से भी अपना भोजन ले सकता है। (2.3) फंजाई सड़े हये सन्तरे पर नीले रंग के मखमली धब्बे, पुराने अचार और मुरब्बों तथा बासी रोटी पर पाये जाने वाले चिकतरे धब्बे, पुराने मैले कपड़ों तथा मोजों पर पाये जाने वाले हरे धब्बे, या फिर मानसून में पेड़ों के तनों पर पाये जाने वाले धब्बे, ये सब फंजाई या फफूंद के ही अलग-अलग प्रकार हैं। फफूंद अनेक प्रकार की होती हैं। यह एक कोशिय तथा बहकोशिय दोनों प्रकार की होती है। ये स्पोट भी पैदा करती हैं तथा लैंगिक और अलैंगिक दोनों प्रकार से प्रजनन करती है। इसकी एक लाख से अधिक प्रजातियाँ पाई जाती है। फंफूद को प्रकाश-संश्लेषण रहित व वनस्पति माना जाता है। यह कार्बनिक पदार्थों को अपना भोजन बनाती हैं। ये बैक्टेरिया में बड़ी होती हैं। फंफूद दो वर्गों में पायी जाती है यीस्ट तथा मोल्ड । यीस्ट मुख्यतः एक कोशिय होते हैं जबकि मोल्ड बहुकोशिय होते हैं तथा जन्तु की तरह की-सी इनकी बनावट होती है। मोल्ड हमारी तरह ऑक्सीजन पर निर्भर करते हैं जबकि यीस्ट ऑक्सीजन एवं ऑक्सीजन-विहीन दोनों प्रकार के वातावरण में जीवित रह सकते हैं। कुछ फंफूद बीमारी फैलाते हैं जबकि कुछ फंफूद दवाइयाँ बनाने के काम भी आते हैं। पैंसलीन जैसी बहुमूल्य औषधि फंफूद से ही बनाई जाती है। कुछ फंफूदों का प्रयोग खाद्य पदार्थ बनाने में भी किया जाता है। (2.4) एल्गे __ इसे हिन्दी में काई भी कहते हैं। अनेक तालाब, पोखर, रुके हुये पानी पर हरे रंग की तैरती हुई परत या फिर पानी की टंकियाँ तथा स्नानागार के किनारों पर हरे रंग की परत को सामान्यतः देखा जा सकता है। हरे रंग की इस परत को एल्गे या काई कहते हैं। ये वनस्पति जैसे ही सजीव होते है तथा इनमें क्लोरोफिल नाम का पदार्थ भी होता है। ये प्रकाशसंश्लेषण की क्रिया द्वारा अपना भोजन बनाती हैं तथा नमी वाले स्थानों पर पनपती हैं। इसी कारण इन्हें पानी की घास की संज्ञा दे दी जाती है। 20 AIIIIIII IIT ALI NITIV तुलसी प्रज्ञा अंक 111-112 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524606
Book TitleTulsi Prajna 2001 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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