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________________ पर्यावरणीय चिन्तन आचार्य महाप्रज्ञ के साहित्य में -प्रो. नलिन शास्त्री आचार्य महाप्रज्ञ वर्तमान युग के एक ऐसे क्रान्तिकारी विचारक, जीवन-सर्जक और आचारनिष्ठ संत हैं जिनके जनकल्याणी विचार जीवन की आत्यान्तिक गहराइयों, अनुभूतियों तथा साधना की अनन्त ऊँचाइयों एवं आगम प्रामाण्य से उद्भूत हो मानवीय चिन्तन के सहज परिष्कार में सतत् सन्नद्ध हैं। उनके उपदेश हमेशा जीवन-समस्याओं/सन्दर्भो की गुत्थियों के मर्म का संस्पर्श करते हैं, जीवन को उसकी समग्रता में जानने और समझने की कला से परिचित कराते हैं। आपका चिन्तन-फलक देश, काल, सम्प्रदाय, जाति, धर्म-सबसे अलग हंटकर प्राणी-मात्र को समाहित करता है। एक युगबोध देता है, नैतिक जीवन जीने की प्रेरणा देता है, वैश्विक मानव की अवधारणा को ठोस आधार देता है जहां दूर-दूर तक कहीं भी दुरूहता नहीं है, जो है, वह है, भाव-प्रवणता, सम्प्रेषणीयता और रत्नत्रयों के उत्कर्ष से विकसित हुआ उनका प्रखर तेजोमय व्यक्तित्व, जो बन गया है करुणा, समता और अनेकान्त की त्रिवेणी को अन्तर्लीन करता वह क्षीर-सागर जिसमें अवगाहन करने की कोमल अनुभूतियाँ हैं शब्दातीत। आचार्यश्री महाप्रज्ञ की सर्जना यात्रा नव चिन्तन के बोध को सर्वदा अभिहित तो कराती ही है, ज्ञान, आनन्द तथा शक्ति के त्रिकोण का आध्यात्मिक साक्षात्कार भी कराती है और वह भी पूरी सहजता के साथ। यही कारण है कि पर्यावरण संरक्षण के प्रति आचार्यश्री का चिन्तन समसामयिक चिन्तन धारा से अलग है और मनुष्य तथा पर्यावरण के बीच गहरी आत्मीयता की पहचान कराता है। वे मानते है कि पर्यावरण का संकट धरती के दोहन की मानवीय संकीर्ण दृष्टि ने उद्भूत किया है और इससे उबरने के लिये नीति/आचार के तानेबाने में रची-बसी चेतना को विकसित करना अपरिहार्य होगा, क्योंकि यही चेतना जीवन-शैली और तकनीकी ज्ञान प्रभावित करती हैं। 96 AIII IIIIIIIIIIIIV तुलसी प्रज्ञा अंक 111-112 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524606
Book TitleTulsi Prajna 2001 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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