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________________ हमारी शिक्षा में अहिंसा की इस सार्वभौमिक भावना/तत्व का समावेश किया जाना आवश्यक है जो असमानता और शोषण की खाई को पाट सकती है। इसमें “सत्वेषु मैत्री" की भावना रूपाकार होती है और हम मानवता के गुण से जुड़ते हैं। ___हिंसा का मूल कारण-इच्छाओं की बढ़ती लिप्सा है। इच्छाओं की तृप्ति या परिशमन के लिये यह भोग उपभोग की सामग्री जुटाता है। सामग्री जुटाने में स्वार्थ, चोरी या झूठ का आश्रय लेकर बेतहाशा दौड़ में लगा है परन्तु इच्छायें पिशाच हैं जो कभी तृप्त या शान्त नहीं होती। छहों महाद्वीप आणविक अस्त्रों के ढेर पर बैठा-शक्ति का मुखौटा धारण किये है परन्तु भीतर ही भीतर भय से कांप रहा है। अहिंसा ही केवल अभय और सुख-शान्ति का मार्ग प्रशस्त कर सकती है। (2) शिक्षा में सत्य, अचौर्य जैसे तत्वों का समावेश सामाजिक-समानता और अपरिग्रहवाद के लिये अत्यन्त आवश्यक है। नैतिक शिक्षा के बारे में भगवान महावीर की वाणी को शिक्षा का अभिन्न अंग बनाया जाना सामयिक बन गया है। "सत्य"-प्रकृति/प्रभु की प्रतिकृति है। आत्म-सिद्धि और आत्म-शुद्धि सत्यान्वेषी को प्राप्त हो सकती है। शिक्षा उस दिन ज्ञान और विद्या की संज्ञा प्राप्त कर सकेगी जब उसमें ऐसे आचरण तत्व रखे जायें जो विश्वासघात और धोखाधड़ी में आस्था नहीं रखते हों। सत्याणुव्रती श्रावक-एक प्रामाणिक व्यक्ति होता है। (3) जो वस्तु दी नहीं गई हो, उसे ग्रहण करने से विरत रहना अचौर्याणुव्रत है। सद्गृहस्थ-अपने व्यवसाय में झूठ और चौर्यकर्म का आश्रय नहीं लेता। वह व्यापार में अपमिश्रण, टैक्स-चोरी आदि नहीं करता । नाप-तौल के मापक सही रखता है। अनधिकृत स्वामित्व की भावना चौर्यकर्म है। वह सत्यघोष की भांति बनकर ईमानदारी का मुखौटा लगाकर किसी की रखी विरासत का अपहरण नहीं करता। वह अपने नौकर का भी शोषण नहीं करता है। न्याय उसकी पूंजी होती है। इन दोनों व्रतों का धारी सामाजिक प्रतिष्ठा के साथ जीवन में यश की पूंजी को भी प्राप्त करता है। (4) आर्थिक असमानता और सामाजिक वैषम्य का मुख्य कारण हमारे अन्दर की लालसा/लोभ/इच्छा और स्वार्थ है। इच्छाओं के कारण परिग्रह और संग्रह सामाजिक प्रदूषण है। परिग्रहपरिमाण रूप अणुव्रत इसके नियंत्रण का एक प्रशस्त मार्ग है। __ अनावश्यक अति संग्रह-एक प्रकार की विक्षिप्तता ही है। तृष्णा की कोख से इसका जन्म होता है। आचार्य श्री महाप्रज्ञ के शब्दों में—“आदमी हिंसा-शरीर, परिवार, भूमि, धन और सत्ता के लिये करता है। ये सब परिग्रह हैं अर्थात् हिंसा का मुख्य कारणपरिग्रह है। इच्छा, हिंसा और परिग्रह तीनों साथ-साथ चलते हैं।" अतः आर्थिक समानता में ही अहिंसा का विश्वास संभव है। हमारी शिक्षा का मूल आधार-समता, सहिष्णुता और समानता होना चाहिये। 82 some तुलसी प्रज्ञा अंक 110 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524605
Book TitleTulsi Prajna 2000 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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