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________________ इतिहास जैन ग्रन्थों में वर्णित भगवान् पार्श्व के कतिपय विचारणीय प्रसंग -डॉ. जिनेन्द्र जैन भगवान् पार्श्वनाथ भारतीय संस्कृति के एक जाज्वल्यमान नक्षत्र के रूप में आज भी जाने जाते हैं। वैदिक और श्रमण संस्कृति के रूप में प्राप्त भारतीय परम्परा को देखने पर यह कहा जा सकता है कि वे श्रमण-संस्कृति के उन्नायक तो थे ही, वैदिक परम्परा की यज्ञ-याग् प्रधान प्रवृत्ति को भौतिकता से आध्यात्मिकता की ओर मुखरित करने का श्रेय भी भगवान पार्श्व को ही है। निष्कर्ष रूप में आज यह भी स्वीकारा जाता है कि उपनिषद् साहित्य में प्राप्त विस्तृत आध्यात्मिक चर्चा को भगवान् पार्श्व की ही देन कहा जा सकता है। भगवान् पार्श्व के जन्मकाल, नामकरण, आयु, वंश-कुल, माता-पिता, विवाह आदि व्यक्तित्व के कतिपय बिन्दुओं पर जैन साहित्य में भिन्न-भिन्न उल्लेख प्राप्त होते हैं। उनकी साधना और जीवन-दर्शन सम्बन्धी मान्यताओं पर भी चिन्तन करने का एक अवसर हो सकता है, किन्तु यहां पार्श्व के वैयक्तिक बिन्दुओं को जैन आगम व अन्य जैन साहित्य के संदर्भ में खोजने का एक लघु प्रयास किया गया है। जैन आगमों में भगवान् पार्श्व के जन्म से लेकर निर्वाण तक की अनेक घटनाओं का विवेचन किया गया है। समवायांग और कल्पसूत्र सहित चउप्पनमहापुरिसचरियं, त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, उत्तरपुराण, पद्मपुराण, महापुराण, सिरिपासणाहचरिउ, श्रीपार्श्वनाथचरितं, पासणाहचरिउ, आवश्यक नियुक्ति प्रभृति अनेक तुलसी प्रज्ञा अक्टूबर-दिसम्बर, 2000 ED 989 57 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524605
Book TitleTulsi Prajna 2000 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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