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________________ चिन्तन-दिशा हेमचन्द्र के प्राकृत-व्याकरण के अपभ्रंश उदाहरण-पद्यों के भाषान्तर का पुनरीक्षण ---- रामप्रकाश पोहार हेमचन्द्र ने अपने प्राकृत व्याकरण के चतुर्थ परिच्छेद में सूत्र संख्या 329 से 448 पर्यन्त अपभ्रंश का व्याकरण दिया है। इसके अन्तर्गत उदाहरण के रूप में अपभ्रंश के 176 पद्य आए हैं, जो प्रायः दोहा और गाथा छन्दों में हैं। इन उदाहरण-पद्यों की समग्रता में अपभ्रंश मुक्तक काव्य का एक अच्छा-सा नमूना मिलता है। हेमचन्द्र का प्राकृत व्याकरण भण्डारकर ओरियण्टल रिसर्च इन्स्टीट्यूट के द्वारा कुमारपालचरित के परिशिष्ट के रूप में सन् 1936 में प्रकाशित किया गया। बाद में इसका पृथक् पुनर्मुद्रण होता रहा और हाल का पुनर्मुद्रण 1980 ईसवी का है। इस संस्करण के सम्पादक, डॉ. पी.एल. वैद्य ने पुस्तक के अन्त में अंग्रेजी में संक्षिप्त टिप्पणियां दी हैं। इन टिप्पणियों में अपभ्रंश उदाहरण-पद्यों की संस्कृत छाया के अतिरिक्त अंग्रेजी भाषान्तर भी दिए गए हैं। उदाहरण-पद्यों को समझने में यह भाषान्तर बहुत उपयोगी है। परन्तु 1936 से आज तक अपभ्रंश का अभ्यास बहुत आगे बढ़ा है और स्थान-स्थान पर डॉ. वैद्य के भाषान्तर पर पुनः विचार करने की आवश्यकता प्रतीत होती है ; आखिर नई पीढ़ी को डॉ. वैद्य के समुन्नत स्कन्ध से उचक कर देखने का अवसर प्राप्त है, इसलिए इस दिशा में प्रयास व्यर्थ नहीं होना चाहिए। %3 - तुलसी प्रज्ञा अंक 110 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524605
Book TitleTulsi Prajna 2000 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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