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अन्नाणी किं काही? किं वा नाहिइ छेयपावगं । जो ज्ञानी नहीं है वह श्रेय-अश्रेय में भेद कैसे करेगा? कैसे श्रेय का आचरण करेगा और कैसे अश्रेय का परित्याग करेगा? शुभ-अशुभ को जानने के लिए भी आचार शास्त्र में तत्त्वज्ञान आवश्यक है। फिर श्रावक की परिभाषा में कहा भी गया है-जो जीवाजीव का ज्ञाता होता है वह श्रावक होता है। 'न्यूनतम नव तत्व विद्या का सहज संज्ञान हो, स्वस्थ सम्यग् दृष्टि सम्यग् ज्ञान का संज्ञान हो। बिना प्रत्याख्यान श्रावक भूमि में कैसे बढ़े? बिना अक्षर-ज्ञान जीवन-ग्रन्थ को कैसे पढ़ेm/३३॥
नव तत्वों के परिप्रेक्ष्य में सोचा जाए तो यदि तत्वज्ञान नहीं होगा तो जड़-चेतन का भेद कैसे जानेंगे? कैसे पुण्य-पाप को समझकर हेय को छोड़ेंगे और उपादेय को ग्रहण करेंगे? कैसे बन्धन से बचेंगे? कैसे बुराइयों का प्रवेश रोकेंगे? बन्धन से मुक्ति की ओर प्रयाण करने में तत्वज्ञान हमारे लिए रोशनी की मीनार है।
ज्ञान, दर्शन के साथ चरित्र की साधना श्रावक के लिए अत्यन्त आवश्यक बतलाई है। चरित्र की शुरूआत व्रत से होती है और व्रत की शुरूआत प्रत्याख्यान से। बिना त्याग की भाषा में श्रावकत्व की भूमिका शुरू नहीं होती। आज आम लोगों की सोच बन गई कि वे संकल्प कर सकते हैं मगर त्याग (प्रत्याख्यान) से परहेज रखते हैं। इस संदर्भ में हमें संकल्प
और त्याग में फर्क समझना होगा। संकल्प परिस्थितिवाद से और इच्छा-स्वातंत्र्य से जुड़ी हुई होती है। यदि मनुष्य का मन चंचल है, इन्द्रियां बहिर्मुखी हैं, कषाय उद्दीप्त हैं तो संकल्प बार-बार टूटता है। थोड़ा सा मन कमजोर पड़ा कि संकल्प पीछे छूट जाएगा मगर त्याग का लोह वरण हमें विकल्प के बारे में सोचने ही नहीं देगा। दरवाजा बंद कर दिया तो कर दिया, फिर नहीं खुल सकता। अतः प्रत्याख्यान के हार्द को समझकर श्रावक इस दिशा में गतिशील बने।
___ श्रावक संबोध में श्रावकाचार की आगमिक बातों को सरलीकरण करके सामयिकी प्रस्तुति दी गयी है। बारह व्रतों की विस्तृत व्याख्या को संक्षिप्त सूत्रात्मक शैली में प्रस्तुति देते हुए आधुनिक समस्याओं के समाधान की ओर भी संकेत किया है। अहिंसा अणुव्रत से आतंकवाद का अंत, सत्य अणुव्रत से प्राणी मात्र के प्रति मैत्रीभाव, अचौर्य अणुव्रत से आर्थिक अपराधीकरण का शमन, ब्रह्मचर्य अणुव्रत से भोगेच्छा का संयमन और अपरिग्रह अणुव्रत से इच्छा-परिमाण, आर्थिक विग्रह का अंत, आवश्यकता और आंकाक्षा का भेदज्ञान होना बतलाया है। (श्रावक संबोध ३५-४०)
आज की समस्या है उपभोक्तावादी संस्कृति की प्रधानता। पदार्थ कम, उपभोक्ता 80 ATTITUALINITIWNITI TINITIAWI NITITITITIV तुलसी प्रज्ञा अंक 109
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