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है-इसके लिए अभी भी कोई स्पष्ट मानदण्ड नहीं है? यद्यपि स्वैच्छिक रूप से नागरिकों के विरूद्ध सैनिक या पुलिस कार्यवाही, सरकार अथवा इसके एजेण्टों द्वारा आतंकवादी कार्यवाही तथा सामूहिक दण्ड आदि सदैव त्याज्य हैं। पर उन स्थितियों के लिए अभी भी अन्तर्राष्ट्रीय कानून की अपेक्षा है, जो सामूहिक यातना व जातीय घृणा को बढ़ाती हैं। सामाजिक एवं राजनैतिक संघर्षों में मानवाधिकार की आवश्यकता
उपर्युक्त सभी विवशताएं एवं सीमाएं संघर्षों के दौरान राज्य पर लागू होती हैं, भले ही वे सामाजिक संघर्ष हों या नृवंशीय। लेकिन सामाजिक व राजनैतिक संघर्षों के समय कुछ अतिरिक्त बिन्दुओं पर ध्यान दिया जाना अपेक्षित है। जो समाधान मानवाधिकार कानून द्वारा सुझाये गये हैं उनकी पालना आवश्यक है। सामाजिक संघर्षों में अन्तर्राष्ट्रीय, सामाजिक और आर्थिक अधिकारों के अनुसार-पर्याप्त जीवनस्तर जिसमें भोजन व आवास सम्मिलित हैं, कार्य का अधिकार, शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं का अधिकार आदि संरक्षित रहने चाहिए। संघर्ष के परिणामस्वरूप प्रभुत्व वाला समूह यदि दूसरे समूह का शोषण करता है तथा उनके सामाजिक अधिकार छीने जाते हैं तो मानवाधिकार कानून को चाहिए कि वह ऐसी परिस्थितियों को सुधारे।
राजनैतिक संघर्षों के समय भी यदि प्रभुत्व वाला समूह दूसरे समूह के लोगों को राज्य के राजनैतिक अंग के रूप में प्रवेश से इन्कार करता है तो ऐसी स्थितियों को भी ठीक करना मानवाधिकार कानून का कार्य है। यूनिवर्सल डिक्लेरेशन की धारा 21 के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपने राष्ट्र की सरकार में प्रत्यक्ष रूप से अथवा उनके द्वारा चयनित प्रतिनिधियों के रूप में हिस्सा लेने का अधिकार है तथा प्रत्येक व्यक्ति को अपने राष्ट्र की सार्वजनिक सेवाओं में प्रवेश का अधिकार है। यही धारा यह भी स्पष्ट करती है कि लोगों की ईच्छा ही सरकार की सत्ता का आधार होगी। वंशीय व जातीय संघर्षों में अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून का महत्त्व
संघर्षों के दौरान मूलभूत मानव अधिकार निरन्तर लागू रहने के प्रावधान हैं किन्तु वंशीय व जातीय संघर्षों के सम्बन्ध में कुछ अन्य मुद्दे व समस्याएं उभरकर सामने आती रही हैं।
अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून में भेद-भाव को पूर्णतः समाप्त किये जाने का प्रावधान है किन्तु वंशीय व जातीय भेदभाव पर आधारित संघर्ष पूर्ण रूपेण समाप्त हो; मानवाधिकार कानून द्वारा यह सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है।
मानवाधिकार कानून के अन्तर्गत लोगों को आत्मनिर्णय का अधिकार है। इस अधिकार को इण्टरनेशनल कोवीनेंट ऑन इकोनोमिक, सोशिल एण्ड कल्चरल राइट्स तथा इण्टरनेशनल कन्वेंशन ऑन सिविल एण्ड पॉलिटकल राइट्स (जिन्हें संयुक्त राष्ट्र द्वारा तुलसी प्रज्ञा अप्रेल-सितम्बर, 2000 AY
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