SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृण- सेडिय, भत्तिय (चिरायता), रोहियंस (दीर्घरोहिणतृण) आसाढए (नील दूर्वा), अज्जुण (अर्जुन), एरंड, कुरुविन्द (मुस्ता), सुंठ (शृंगबेर), विभंगू।। (प्रज्ञापना पद १ सूत्र ४२) वलय-ताल (ताड़), तमाल तक्कलि (अरणी), सरल (चीड़) साल (शाल), पूयफली (सुपारी), खज्जूरी (खजूरी) नालिएरी (नालिकेर)। (प्रज्ञापना पद १ सूत्र ४३) हरित-अब्भोरुह (कमल), वोडाण, तंदुलेज्जग, वत्थुला (बथुआ) मंडुक्की, (ब्राह्मी), जियंतय (जीवशाक), सयपुप्फा (बनसौंफ), दव्वी (दारु हल्दी), तंदुलेज्जग (चौलाई का शाक) आदि। (प्रज्ञापना पद १ सूत्र ४४) साली (चावल), बीहि (व्रीहि), गोधूम (गेहूं), जवा (जौ), जवजवा (जई), मास (उड़द), सण (शण), सरिसव (सर्षप)। (प्रज्ञापना पद १ सूत्र ४५) जलरुह-उदए (सुगन्धवाला), नवए (शैवाल), पणए (काई), हढ़ (जलकुम्भी), उत्पल, पद्म, कुमुद, अरविन्द, भिस (कमलकन्द), भिसमुणाल (कमलनाल) (प्रज्ञापना पद १ सूत्र ४६) कुहण-आए (आर्य), कुहण (पन्तिपर्ण) सज्जाय (बड़ीशाल) दल हलिया (दारू हल्दी), सफ्फाईए (सप्ताश्व) छताए (जाल बर्बर)। (प्रज्ञापना पद १ सूत्र ४७) इस प्रकार प्रज्ञापना सूत्र में प्रत्येक वनस्पति के ये बारह प्रकार दिए गए हैं। जैन आगम वनस्पति कोश में जब हम इनके स्वरूप की यात्रा करते हैं तब कुछ प्रश्न उभर कर सामने आते हैं कि जिन वनस्पतियों को सूत्र में लता, वल्ली, गुल्म, गुच्छ या वृक्ष के अन्तर्गत लिया गया है, वर्तमान में उपलब्ध साहित्य में उनका स्वरूप भिन्न रूप में मिलता है। प्रत्येक वनस्पति में स्वरूप भेदकुज्जय-इसका उल्लेख गुल्म वर्ग में है। किन्तु यह गुलाब जाति की इतस्ततः फैलने वाली विस्तृत बेल है। अत्थिय–इसका उल्लेख बहुबीजक वृक्ष के रूप में हुआ है किन्तु वनस्पति कोश में इसकी पहचान एक लता के रूप में है जो वृक्ष के सहारे ऊपर चढ़ जाती है। देवदाली-इसका उल्लेख भी बहुबीजक में है लेकिन यह कर्कोट की लता के समान होती है। वागली-इसका समावेश वल्ली वर्ग में है। वर्तमान साहित्य के अनुसार इसकी मजबूत कांटेदार झाड़ी होती है। अक्कबोंदि-यह वल्ली वर्ग की वनस्पति है किन्तु यह भंगराजादि कुल का प्रसिद्ध पुष्प क्षुप है। अतिमुक्तक भी एक झाड़ीदार पौधा है। 34 AII MITIN SWI IIIIIIV तुलसी प्रज्ञा अंक 109 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524603
Book TitleTulsi Prajna 2000 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy