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जाते हैं। परिणाम यह है कि समाज पर उनका कुछ परिणाम नहीं हो पा रहा है। एक बार पं. सद्गुरुशरण अकशी (कानपुर) ने यही प्रश्न वर्षों पहले उठाया था—'सन्तों ने हमारे लिए क्या किया?
शेख शादी ने लिखा-'ऐ अरब, तू काबा कभी नहीं पहुंचेगा, क्योंकि तूने जो रास्ता पकड़ा है वह तुर्किस्तान जाता है।' कहावत है-बोये पेड़ बबूल के, बेर कहां से होय।
अब सन्तों के जीवन चरित्र में कभी-कभी कई अव्यावहारिक बातें मिलती हैं। वे जीवन में व्यापार-व्यवसाय नहीं कर सके। न संत तुकाराम दुकान चला सके, न गुरु नानक अनाज तौल सके। न मीराबाई राजकन्या या राज वधु का जीवन बिता सकी, न रसखान दरबारी टीमराय निभा सके। न रामकृष्ण परमहंस अपने पिता के व्यवसाय से जुड़े रहे, न मोहनदास गाँधी बैरिस्टरी कर सके । इसलिए लौकिक दृष्टि से सन्त और भक्तों को साधारण लोग असफल या अवास्तववादी कहते हैं। वे स्वप्न द्रष्टा होते हैं, इसलिए समाज को उनकी बानी 'उल्ट बंतिया' या सन्धा थाबा या प्रहेलिका जैसी लगती है। दवाएँ सभी मीठी नहीं होती। कुछ कड़वी भी होती हैं। कुछ आरम्भ में दुःख देने वाली । परन्तु अंत में वे सुख देती हैं। समाज को इसी दृष्टि से सन्तों की ओर देखना चाहिए।
कोल्टन ने कहा कि महान् पुरुष अपने लक्ष्यों की प्राप्ति ऐसे साधनों से करते हैं जो दुर्बुद्धियों की पकड़ के बाहर होते हैं और जो आम लोगों के तरीकों से उलटें भी हो सकते हैं। लेकिन उसके लिए मन का गम्भीर ज्ञान होना चाहिए जैसा उस दार्शनिक को भौतिक पदार्थ का था जिसने गरमी की मदद से बर्फ बना दिया।'
वस्तुतः जिसे हम वस्तु जगत् कहते हैं, वह सन्तों की दृष्टि में 'वास्तव' नहीं है। जिसे हम अमूर्त कहते हैं उसे ही वह आधार मानते हैं। अमितगति ने सन्त की परिभाषा के ये गुण गिनाये
(1) चित्त को प्रसन्न करने वाला (2) व्यसन-विमुख (3) शोक-ताप को शान्त करने वाला (4) पूज्य भाव बढ़ाने वाला (5) सत्य, हितकर, नम्र, सार्थक, वारयुक्त, निर्दोष, वचन बोलने वाला (6) श्रवण सुखद (7) न्यायानुकूल
(8) बुधजन द्वारा सम्मानित 26 AMITTINI TION
TWITTINNILITTITLI NITIV तुलसी प्रज्ञा अंक 109
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