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1. संघ-इसके अन्तर्गत मुख्य रूप में मूलसंघ, नन्दिसंघ, नविलूरसंघ, मयूरसंघ, किचूरसंग, किटूरसंघ, कोल्लतूरसंघ, गनेश्वरसंघ, गौडसंघ, श्रीसंघ, सिंहसंघ,
परलूरसंघ आदि। 2. गण-बलात्कारगण (प्रारम्भिक नाम बलिहारी या बलगारगण), सूरस्थगण,
कोलाग्रगण, उदार, योगरिय, पुन्नागवृक्ष, मूलगण, पकुर आदि। 3. गच्छ चित्रकूट, होत्तगे, तिगरिल, होगरि, पारिजात, मेषपाषाण, तिंत्रिणीक, सरस्वती, ' पुस्तक, वक्रगच्छ आदि. 4. अन्वय-कौण्डकुदान्वय, श्रीपुरान्वय, कित्तूरान्वय, चन्द्रकवाटान्वय, चित्रकूटान्वय
आदि।
सामान्यतः दिगम्बर परम्परा में प्रमुख चार संघ हैं-मूलसंघ, द्रविडसंघ, काष्ठासंघ और यापनीयसंघ । इनमें प्राचीन मूल, द्राविड व यापनीय तीनों संघों में कतिपय गणों व गच्छों के समान नाम मिलते हैं। 'मूलसंघ में द्रविडान्वय तथा द्रविडसंघ में कोण्डकुन्दान्वय का उल्लेख मिलता है। मूलसंघ के सेन व सूरस्थगण द्राविडसंघ में भी प्राप्त होते हैं। नन्दिसंघ तीनों में ही है। मूलसंघ के बलात्कारगण, क्राणूरगण यापनीयसंघ में भी हैं। इनमें इन संघों की शाखाओं के संक्रमण का भी पता चलता है। नन्दिसंघ-डॉ. चौधरी के अनुसार” ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर हम कह सकते हैं कि नन्दिसंघ या गण बहुत प्राचीन है। इस संघ की एक प्राकृतपट्टावली मिली है। नन्दिसंघ यापनीय और द्राविडसंघ में भी पाया जाता है। सम्भव है कि प्रारम्भ में नन्दान्त नामधारी (यथा-देवनन्दि, विद्यानन्दि आदि) मुनियों के नाम पर इसका संगठन किया गया हो अथवा नन्दिसंघ की परम्परा में दीक्षित होने के कारण इनके नाम के साथ 'नन्दि' जुड़ गया हो। मूलसंघ के साथ इसका उल्लेख यापनीय एवं द्रविड़ संघ के बाद 12वीं शताब्दी के लेखों में पाते हैं, पर 14-15वीं शताब्दी में नन्दिसंघ एवं मूलसंघ एक-दूसरे के पर्यायवाची बन जाते हैं। इस संघ की उत्पत्ति प्रारम्भ में गुफावासी मुनियों से कही गई है, जिससे प्रतीत होता है कि इस संघ के मुनिगण कठोर तपस्या प्रधान निर्लिप्त वनवासी थे, पीछे युगधर्म के अनुसार वे बहुत बदल गये।
देवसंघ-देवसंघ का संगठन देवान्त नामधारी (नाम के सात देव नामक संघ परम्परा के होने वाले) मुनियों पर से हुआ था, पीछे इसका प्रतिनिधि देशीगण उपलब्ध होता है।
सेनसंघ-सेनसंघ का नाम भी सेनान्त अपने नाम के साथ 'सेन' लिखने वाले, जैसे जिनसेन आदि मुनियों से हुआ है और इसके प्रतिष्ठापक 'आदिपुराण' के कर्ता जिनसेन तुलसी प्रज्ञा अप्रेल-सितम्बर, 2000 NOWINITITITITITITINITV 17
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