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________________ बातें की, इसीलिए आचारशास्त्रीय दृष्टि से मीमांसा आज जरूरी है कि परिवर्तन क्यों नहीं आ रहा है? साधना की तेजस्विता क्यों नहीं बढ़ रही है? एक महाव्रत या अणुव्रत का जो आचार है वह मूर्तिमान क्यों नहीं हो रहा है? उसका कारण यही है कि वस्तु-त्याग या पदार्थ- - त्याग प्रमुख बन गया । पदार्थ त्याग के साथ जो पदार्थ-भोग की चेतना का परिष्कार होना चाहिए वह बात बिल्कुल गौण हो गयी, अदृश्य जैसी हो गयी। इसीलिए अपरिग्रह, इच्छा - परिमाण, समाज-व्यवस्था के लिए उपयोगी नहीं बन रहा है और शायद व्यक्ति के लिए भी उपयोगी नहीं बन रहा है । वर्तमान की समाज-व्यवस्था में यदि उपभोग का सीमाकरण, पदार्थ के संग्रह का सीमाकरण और उससे फलित होने वाला इच्छा का परिमाण, ये तीन सूत्र समाज-व्यवस्था के साथ जुड़े हुए हों तो संभव है कि अनेक समस्याओं का समाधान हो सकता है। बहुत ज्यादा संग्रह करने वाले लोग, बहुत ज्यादा उपभोग करने वाले लोग, अमीर लोग किस प्रकार उपभोग करते हैं और कितना पदार्थों का संग्रह करते हैं, कितना इच्छाओं का विस्तार करते हैं, किसी राष्ट्र का नाम लेने की आवश्यकता नहीं किन्तु ऐसे राष्ट्र हैं जो जनसंख्या में तो बहुत कम हैं किन्तु दुनिया के बहुत बड़े पदार्थों को भोग-उपभोग में ले रहे हैं । इसीलिए समस्या पैदा हो रही है। यह वर्तमान की समस्या का एक बहुत बड़ा समाधान है इच्छापरिमाण । पहले पदार्थ के संग्रह का सीमाकरण करें और उपभोग का सीमाकरण करें फिर पदार्थ-संग्रह की चेतना का परिष्कार करें। इस दिशा में यदि समाज आगे बढ़ पाया तो अनेक समस्याओं का समाधान सहज सुलभ हो जाएगा। 10 Jain Education International For Private & Personal Use Only 000 | तुलसी प्रज्ञा अंक 109 www.jainelibrary.org
SR No.524603
Book TitleTulsi Prajna 2000 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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