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________________ तत्व-दर्शन जीव के पांच भाव स्वरूप और समीक्षा व नीरज जैन पिछले अंक का शेषांश आचार्य उमास्वामी ने मोक्षशास्त्र में बंध तत्व की व्याख्या करते हुए बंध के पाँच प्रत्यय गिनाये हैं। आठवें अध्याय का पहला सूत्र है'मिथ्यादर्शनाविरति-प्रमाद-कषाय-योगा-बंधहेतवः।' मिथ्यादर्शन, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग ये बंध के हेतु हैं। प्रारम्भ में औदयिक भावों के 21 उत्तर भेदों में प्रकारान्तर से इन पाँचों प्रत्ययों की गणना की जा चुकी है। एक योग को छोड़कर मिथ्यादर्शन, अविरति, प्रमाद और कषाय ये चारों प्रत्यय मोहनीय कर्म के उदय में होने वाली चेतना की वृत्तियां हैं। योग मन-वाणी और शरीर के निमित्त से जीव के परिणामों में उत्पन्न होने वाली अस्थिरता या हलचल का नाम है । योग प्रधानतः आस्रव के कारण कहे गये हैं। बंध में योग का योगदान केवल प्रकृति और प्रदेश बंध तक ही सीमित है। कर्म में स्थिति और अनुभाग शक्ति उत्पन्न करना योग का कार्य नहीं है, वह कषाय का काम है। इस प्रकार विचार करने पर मोहनीय कर्म में ही बंध के कारणपने का एकाधिकार सुरक्षित मिलता है। प्रवृत्ति का सबसे बड़ा प्रदूषण : कषाय - बंध के समय सबसे अधिक योगदान कषाय का होता है। उमास्वामी ने तो दूसरे तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2000 AMITINI TIOITINI TI ANS 59 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524602
Book TitleTulsi Prajna 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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