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________________ आचार्य नेमिचन्द्र एवं उनके टीकाकार इदि णेमिचंदमुणिणा णप्पसुदेणभयणंदिवच्येण। रइयो तिलोयसारो खमंतु तं बहुसुदाइरिया॥ त्रि.सा., 1018 ।। इस गाथा से ज्ञात होता है कि नेमिचन्द्र के गुरु अभयनन्दि थे। जस्य य पायपसाएणणंतसंसारजलहिमुत्तिण्णो। वीरिंदणंदिवच्छो णमामि तं अभयणंदि गुरू ।। ल.सा., 653 ॥ इस गाथा में कहा गया है कि जिनके चरणों के प्रसाद से वीरनन्दि और इन्द्रनन्दि शिष्य संसार समुद्र से पार हो गये, उस अभयनन्दि गुरु को नमस्कार । इससे सिद्ध होता है कि वीरनन्दि और इन्द्रनन्दि दोनों अभयनन्दि के शिष्य थे। ये दोनों शिष्य बहुत विद्वान् थे तथा नेमिचन्द्र के गुरु भाई थे। वीरिदणंदिवच्छेणप्पसुदेणभयणंदिसिस्सेण। दसणचरित्तलध्दी सुसूयिया णेमिचंदेण ॥ ल.सा., 652 ।। णमिऊण अभयणंदि सुदसागरपारगिंदंणंदिगुरू। वरवीरणंदिणाहं पयडीणं पच्चयं वोच्छ ॥ क.का., 785 णमह गुणरयभूसण सिद्धंतामियमहाब्धि भात्रभावं । वरवीरणंदिचंदं णिम्मलगुणमिंदणंदिगुरूं ॥ क.का. 896॥ उक्त तीनों गाथाओं से प्रसूत होता है कि नेमिचन्द्र अभयनन्दि के इन दोनों शिष्यों से छोटे थे तथा उन्हें गुरु सम्बोधित करते थे। अतएव इन गाथाओं में नेमिचन्द्र ने उन दोनों को गुरु के समान भक्तिभाव से स्मरण किया है। यहां प्रसंगवश पं. फूलचन्द्रजी का यह तर्क ध्यान देने योग्य है कि दक्षिण भारत में अपने से बड़े सहपाठी को गुरु सम्बोधित करने की प्रथा थी। वर इंदणंदिगुरूणो पासे सोऊण सयलसिद्धतं । सिरिकणयणंदि गुरूणा सत्तट्ठाणं समुद्दिटुं ॥क.का., 396 ॥ इस गाथा का अभिप्राय यह है कि श्रीकनकनन्दि गुरु ने इन्द्रनन्दि गुरु के पास सारे सिद्धान्तों को सुनकर सत्वस्थान का कथन किया। अतएव इस गाथा से हम यह अर्थ ग्रहण करते हैं कि कनकनन्दि नामक आचार्य भी उनके गुरु या उनके लिए गुरुतुल्य थे। अज्जज्जसेणगुणगणसमूहसंधारि अजियसेणगुरू । भुवणगुरू जस्स गुरू सो राओ गोम्मटो जयऊ ॥ जी.का., 733 ।। इस गाथा से इंगित होता है कि नेमिचन्द्र आचार्य अजितसेन को भुवनगुरु कहते थे, जो आर्यसेन के शिष्य और चामुण्डराय के गुरु थे। गतिविधिस्थल : नन्दि, सिंह, सेन और देव मूलसंघ अर्थात् दिगम्बर सम्प्रदाय की तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2000 AMITITIONITIATIVITIVINITINV 43 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524602
Book TitleTulsi Prajna 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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