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तुलसी प्रज्ञा अंक 108 तक का कहना असत् रूप है। यदि सत्य होता तो इसके ऊंचाई के कथन में ही अन्तर न होता। जैसा कि विद्वान् हिल साहब ने कहा कि वायुमण्डल सब तरफ २०० मील तक ऊंचा है। इसके अतिरिक्त अन्य विद्वानों ने और भी ऊँचे तक वायु मण्डल माना है। इसी कथन से पृथ्वी का घूमना भी नहीं ठहरता।
भूगोल भ्रमणवादियों ने तत्पश्चात यह तर्क प्रस्तुत किया कि पूर्वार्द्ध में यन्त्रों का आविष्कार नहीं हुआ किन्तु उत्तरार्द्ध में बड़े-बड़े तेज दूरदर्शी यन्त्र, फोटोग्राफ तथा आकाशी जहाज आदि नए-नए यन्त्र ईज़ाद कर लिए गए हैं, जो भूभ्रमण की पुष्टि करते हैं । यह उनका भ्रम हैं, क्योंकि इन्हीं यन्त्रों के द्वारा ही पृथ्वी का स्थिरपना सिद्ध होता है। दूरबीन में देखने वाले के नेत्र दूरबीन के नीचे शीशे में केन्द्र रूप स्थिर और उसके ऊपर का शीशा दूरबीन में स्थिर, जिसके स्थिर के प्रमाण करने को मकान की खिड़की भी स्थिर जिसके द्वारा ध्रुवतारे को देखा जाता है। तारे का प्रकाश दूरबीन के ऊपर के शीशे में प्रवेश करके नीचे के शीशे में देखने वाले के नेत्र की पुतली केन्द्र स्थान बनकर परिधि पर तारे को दृष्टि करती हैं और तब देखने वाला सर्व-प्रकार से स्थिर रूप में तारे को देखता है तो उसकी दूरी आदि का ज्ञान कर सकता है। यदि पृथ्वी घूम जाए तो देखने वाले मनुष्य के नेत्र की पुतली जो केन्द्र में है वह तारे को उस समय जिस डिग्री पर देखता है, वह सैकिण्डों में ही बहुत दूर हो जाएगा, क्योंकि वह परिधि पर है। इसी प्रकार फोटो ग्राफ भी स्थिर होकर पृथ्वी की तस्वीर लेता है। पृथ्वी घूमने पर वह तारे की तस्वीर नहीं ले सकता। इसी प्रकार आकाश में स्थित वायुयान में स्थित पुरुष कहता है कि पृथ्वी स्थिर है, जीव जन्तु चल रहे हैं, नदी का पानी बह रहा है, वृक्ष पहाड स्थिर हैं । इससे वायुयान भी यही सिद्ध करता है कि पृथ्वी स्थिर है। ऐसे ही जो बड़े भारी यन्त्र हैं, वे सभी पृथ्वी को स्थिर ही सिद्ध करते हैं।
इस प्रकार की श्रृंखला को और आगे बढ़ाया जाय और एक बार पृथ्वी को नारंगी के आकार गोल घूमती हुई मान लिया जाय तो ध्रुवतारा और सूर्य दोनों कैसे स्थिर हो सकते हैं? क्योंकि सूर्य तो पृथ्वी के घूमने के कारण प्रतिदिन पश्चिम को जाता दिखता है, वैसे ही ध्रुवतारा भी दिखना चाहिए, सो दिखता नहीं। वह एक ही स्थान पर स्थिर दिखता है। यदि यह कहा जाय कि सूर्य ९ करोड ३० लाख मील दूरी पर है किन्तु वह ध्रुवतारा असंख्य मील दूरी पर है। अत: एक ही स्थल पर दृष्टि गोचर है अथवा सूर्य तो पूर्व दिशा में स्थिर पृथ्वी के घूमने से पश्चिम की ओर जाता दिखाई देता है, वैसे ध्रुवतारा नहीं है। ध्रुवतारा तो एक पृथ्वी के बीचों बीच में उत्तर की ओर बड़ी दूरी पर है जिससे समस्त पृथ्वी वालों को एक ही स्थल पर दिखता है । यह कहना भी सन्तोषजनक नहीं प्रतीत होता है, क्योंकि पृथ्वी एक समस्थल थाली के आकार घूमती होती तो समस्त पृथ्वी निवासियों को ध्रुवतारा एक स्थल 28 SITUNITI ONSITIN INITIONAINITIAW तुलसी प्रज्ञा अंक 108
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