________________
के प्रति जैन समाज का योगदान
राष्ट्र
० आज के माहौल में जैनों की अहिंसा, मैत्री, करूणा और विश्वबंधुत्व की भावना सिर्फ
आदर्श बनकर न रह जाए, इसके लिए राष्ट्रीयता के परिप्रेक्ष्य में हमें सचेतन बनना होगा । हमें हमारी संवेदनशीलता को खत्म नहीं होने देना है जबकि आज आंखों और कानों ने इतने नृशंस, क्रूरताभरे भीषण आतंक फैलाने वाले घटना प्रसंगों को देख-सुन लिया है। कि दिल पत्थरा से गए हैं। कारगिल युद्ध में खून की नदिया बही, कन्धार में रुके अपहृत विमान का त्रासदी प्रसंग सामने आया, आतंकवादियों द्वारा बम विस्फोट किया गया, आए दिन निर्दोष लोगों को मौत के घाट उतार दिया जाता है। कहीं आगजनी, कहीं हत्याकाण्ड, कहीं अपहरण तो कहीं बलात्कार, ऐसी घिनौनी हरकते हैं कि पाप भी स्वयं कांप जाता होगा। और एक हम हैं कि हमारी संवेदनशीलता ही खत्म हो गई। ऐसे नाजुक क्षणों में हिंसा और क्रूरता में झुलसती महावीर की जन्मभूमि बिहार को ही नहीं, पूरे राष्ट्र को बचाना जरूरी है और इस महायज्ञ में जैन समाज पहल करे, प्रतिस्त्रोतगामी बने । मानवीयता का परिचय दे ।
3 जैन समाज का यह भी दायित्व है कि वह विज्ञापन संस्कृति के परिष्कार में भी अगुआ बने। क्योंकि संयम, सादगी, शालीनता और शिष्टता जैनों का सदा गहना बना है । वे सूरत से ज्यादा सीरत को महत्व देते आए हैं। इसलिए पाश्चात्य संस्कृति की अगवानी में खड़ी युवा पीढ़ी को बोध पाठ सिखाना अत्यन्त जरूरी है ।
विज्ञापन, दूरदर्शन और सिनेमा ने सामाजिक वर्जनाएं तोड़ भारतीय संस्कृति के आदर्शों को ताक पर रखकर अश्लीलता को निर्वस्त्र कर दिया है। विज्ञापन कम्पनियों ने भारतीय सोच को पैसों की चकाचौंध में जड़ीभूत बना दिया है। इस प्रदर्शन ने युवापीढ़ी को अंधी सुरंग में उतार दिया है । अश्लीलता और अपराधों का उच्छृंखल खुलापन युवाओं को उद्दीप्त, कामुक, उच्छृंखल, विलासी, व्यसनी, व्यभिचारी और विद्रोही बना रहा है । व्रत की संस्कृति आज बंदूक की संस्कृति में ढ़ल रही है। क्या जैन समाज इस चरित्र - पतन को चुपचाप देखता रहेगा? वह देश नैतिक मूल्यों को क्या संरक्षण दे सकेगा जहां औरत का शील, संयम, लाज, शालीनता चंद चांदी के टुकड़ों पर बिक रहे हों ? जहां बेडरूम की घटनाएं ड्राइंग रूम में लाने के प्रयास किया जा रहे हों ? वह मिडिया रचनात्मक निर्माण का संदेश देगी क्या? जैन समाज को इस अपसंस्कृति से बचाने के लिए रचनात्मक मोड़ लेना होगा ।
दूरदर्शन के संदर्भ में जैनों से जुड़ा एक और सवालिया मुद्दा है जिस पर हमें बैठकर चिन्तन करना चाहिए। आज टी.वी. के सभी चैनलों पर हिन्दू देवी देवताओं के सिरियलों का
तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च,
2000
NY
7
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org