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________________ राष्ट्र के प्रति जैन समाज का योगदान 0 पर्यावरण के प्रति जागरूक रहेगा। ) जातिवाद, छुआछूत, साम्प्रदायिक अभिनिवेश से दूर रहेगा। कर्मणा जैन का मानसिक संकल्प होगाO मैं किसी निरपराध प्राणी की हत्या नहीं करूंगा। ) मैं आत्महत्या नहीं करूंगा। 2 मैं मांसाहार और मद्यपान नहीं करूंगा। 2 मैं सर्वथा व्यसन-मुक्त रहूंगा। ) मैं हरा-भरा बड़ा वृक्ष नहीं काटूंगा। ये संकल्प भले ही व्यक्ति की जीवन-शैली से जुड़े हों मगर इसका प्रभाव राष्ट्रीयता पर भी पड़ेगा। अत: एक जैन श्रावक यदि ऐसी जीवन-शैली नहीं जीता है तो सूरज की धूप में भी आदमी के ठिठुरते रहने जैसी बात होगी। कुछ विमर्शणीय विचार बिन्दु) राष्ट्रहित में जैन समाज और जैन श्रावक भगवान् महावीर का अर्थशास्त्र समझे । अर्थार्जन की शुद्ध प्रक्रिया पर जागरूक बने । हमारी यह स्पष्ट मान्यता है कि अर्थ और भोग पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता मगर अनावश्यक इच्छाओं पर, अनावश्यक संग्रह पर और अनावश्यक भोग पर अंकुश लगना चाहिए। इसके लिए साधन-शुद्धि और भोगसंयमन पर ध्यान देना होगा। महावीर ने अर्थार्जन के अशुद्ध साधनों से बचने की बात कही। एक सच्चा जैन कभी चोरी का माल नहीं खरीदता। राज्य निषिद्ध वस्तु का आयात निर्यात नहीं करता। झूठा तोलमाप नहीं करता । असली वस्तु दिखाकर नकली वस्तु नहीं देता। बारह व्रतों की व्याख्या . करते हुए भगवान महावीर ने श्रावक आनन्द को कहा था- 'ऐसा व्यापार मत करो जिसमें पन्द्रह कर्मादानों का समावेश हो।' आज की भाषा में कहा जा सकता है कि जैन श्रावक अपने व्यवसाय में शस्त्रों का निर्माण न करे। अभक्ष्य पदार्थ, मादक नशीले पदार्थों का उत्पादन न करे। क्रूरतापूर्वक हिंसाजनित साधन सामग्री का व्यापार न करें। अर्थ की अंधी दौड़ में ऐसे व्यवसाय जैन समाज में खड़ा न हो जो न जैन सिद्धान्तों, आदर्शों और संस्कारों के अनुकूल हो और न राष्ट्र की गरिमानुकूल। जैन समाज की व्यावसायिक साधन-शुद्धि, प्रामाणिक मनोवृत्ति और सम्यग् दृष्टिकोण राष्ट्रीय चरित्र को सुदृढ़ता देगी, क्योंकि दीया एक भी जले मगर रोशनी का विश्वास तो होगा। तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2000 NAINITINITIATIONLINE Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524602
Book TitleTulsi Prajna 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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