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________________ है । ब्रह्मचारी कहता है वपुर्विरूपाक्षमलक्ष्य जन्मता दिगम्बरत्वेन निवेदितं वसु । वरेषु यद् बालमृगाक्षिः मृग्यते तदस्ति किं व्यस्तमपि त्रिलोचने ॥ अर्थात् हे पार्वती ! यह शिव विकृत लोचन है, जन्म का भी कोई ठिकाना नहीं है । यह दिगम्बर है, इसी से इसकी सम्पत्ति का पता चलता है (अर्थात् वह दरिद्र है)। रूप अथवा गुण जो कि वर के विषय में वधु के सम्बन्धी लोग खोजते हैं उनमें से कोई भी इस शंकर में है ? कितना विकृत रूप है शंकर का। लेकिन पार्वती की दष्टि में शिव त्रैलोक्यनाथ हैं, विश्वभावन हैं, सबके स्वामी है। पार्वती कहती हैं अकिंचन: सन् प्रभव: स संपदां त्रिलोकनाथ: पितृसद्मगोचरः । स भीमरूपः शिव इत्युदीर्यते न सन्ति याथार्थ्यविदः पिनाकिनः ।। विभूषणोद्भासि पिनद्धभोगि वा गजाजि नालम्बि दुकूलधारि वा । कपालि वा स्यादथवेन्दुशेखरं न विश्वमूर्तेरवधार्यते वपुः ॥ (कुमार संभव ५.७७-७८) अर्थात् शिव दरिद्र होने पर महान ऐश्वर्य के उत्पादक हैं। श्मशानवासी होते हुए भी त्रैलोक्यनाथ हैं। भयानक आकृति होने पर भी शान्तस्वरूप हैं, ऐसा विद्वान् लोग कहते हैं । शंकर के वास्तविक स्वरूप को जानने वाला इस त्रैलोक्य में कोई नहीं है। त्रैलोक्यात्मक अष्टमूर्ति शिव का शरीर सर्प से वेष्टित है, या अलंकारों से विभूषित है, उनका परिधान गजचर्म है या दुकूल है, वह ब्रह्मशिरः कपालधारी है, या चन्द्रशेखर है, यह कोई जान नहीं सकता है। ___आचार्यश्री महाप्रज्ञ बाहर और भीतर दोनों तरफ से सुन्दर है। इनके काव्य में प्रकृति का हर पदार्थ सुन्दर दिखाई पड़ता है। जड़-चेतन सभी प्राणी जगत् के लिए उपयोगी हैं, उनका अपना महत्त्व है। कवि ने रत्नपाल चरित में रत्नवती के माध्यम से इस तथ्य का उद्घाटन किया है। कल तक रत्नवती को प्रकृति का कणकण दुःख देता था लेकिन आज हृदयता की सुन्दरता प्राप्त होते ही सारा बाह्य संसार मनोरम बन गया। हृदय की शांति के बाद बाह्य जगत् में शांति का सागर लहराने लगा। प्रेम्णाकुला वियति वर्त्मनि पांशुलेपि कूलंकषा जलकणेपि करालि कालो शाखासु पल्लवचये दलसंचयेपि पुष्पोत्करे च कलिकानि करे फलेऽपि । इम २३, अंक ४ ४६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524594
Book TitleTulsi Prajna 1998 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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