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________________ आचार्य महाप्रज्ञ का सौन्दर्य दर्शन हरिशंकर पाण्डेय देववाणी संस्कृत भाषा में निबद्ध आचार्यश्री महाप्रज्ञ की अनेक रचनाएं हैं। इन रचनाओं में सौन्दर्य का उदात्त रूप प्रतिफलित हुआ है । रत्मपाल चरित की नायिका जब संसारिक सुख में आसक्त थी, राजा रत्नपाल के साथ विवाह सम्बन्ध स्थापित करने के लिए लालायित थी, तब तक सृष्टि का हर पदार्थ उसे कष्ट दे रहा था लेकिन एक झोंका आया, आनन्द का परमसौन्दर्य का रसपान करा गया, बस फिर क्या था सब कुछ भव्य एवं उदात्त हो गया। जो कल तक प्रतिकूल थे अब सहचर बन गए -- आत्मवद् सर्वभूतेषु की दृष्टि प्राप्त होते ही । केवल शेष रहा — आनन्द का अथाह सागर, सौन्दर्य की अनाहत ऊर्मियां, रूप नगर का अनाविल लावण्य - कल तक जो व्यथित करते थे उन सबमें आज रत्नवती शान्तरस का पान करने लगी ।" १. श्रद्धा और ज्ञान का समन्वय सौन्दर्य बोध विषय - परित्याग से प्रारंभ होता है, यह ठीक है, लेकिन जैसे ही यह यात्रा आगे बढ़ती है, उसे श्रद्धा और ज्ञान दोनों का साहाय्य आवश्यक हो जाता है । संसार में श्रद्धा महाध्यं वस्तु है । उसको पाकर साधारण जीव भी महान् बन जाता है। श्रद्धा जहां भी रहती है, सुन्दरता का, रमणीयता का वातावरण बन जाता है, सारी कर्कशताएं एवं विरसताएं समाप्त हो जाती हैं, केवल आनन्द का स्वाद ही शेष रहता है ---- सत्संपर्का दधति न पदं कर्कशाः यत्र तर्का सर्वं द्वैधं व्रजति विलयं नाम विश्वास भूमौ । सर्वेस्वादा प्रकृतिसुलभा दुर्लभाश्चानुभूताः श्रद्धा स्वादो न खलु रसितो हारितं तेन जन्म ॥ संबोधिकार आचार्य महाप्रज्ञ घोषणा की है स्पष्ट रूप श्रद्धा और ज्ञान की अनिवार्यता की आगमश्चोपपत्तिश्च सम्पूर्ण दृष्टिकारणम् ।' अतीन्द्रियाणामर्थानां सद्भाव प्रतिपत्तये ॥ ( अतीन्द्रिय पदार्थों का अस्तित्व जानने के लिए आगम श्रद्धा और उपपत्ति (तर्क, ज्ञान ) दोनों आवश्यक हैं। ये मिलकर ही दृष्टि को पूर्ण बनाते हैं । २ मंगल और तप का समन्वय गुरुदेव रविन्द्रनाथ ठाकुर ने मंगल और तप के समन्वय को सौन्दर्य का मूल आधार माना है । सौन्दर्य परम मंगल स्वरूप है क्योंकि अनन्त के साथ सम्बन्ध की तुलसी प्रज्ञा, लाडनूं : खण्ड २३ अंक ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524594
Book TitleTulsi Prajna 1998 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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