SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६ = १८ मुहूर्त की रात्रि । वापस सर्ववाह्य मंडल से सर्वाभ्यन्तर मंडल की ओर गति करने से उत्तरायण प्रारम्भ होता है । मुहूर्त दिन बढ़ता जाता है और रात्रि घटती जाती है। परिधि मेरु पर्वत के दोनों ओर दो बाहु अवस्थित हैं । एक का नाम सर्वाभ्यान्तर और दूसरी का नाम सर्ववाह्य है । मेरु पर्वत की परिधि ६१६२३ योजन की है। सर्व आभ्यन्तर बाहु मेरु पर्वत के पास ९४८६६० योजन की परिधि में है । यह मेरु पर्वत की परिधि का ३० हिस्सा है । ३१६२३४३० - ९४८६६० योजन है । सर्ववाहबाहु लवणसमुद्र के पास ९४८६८३० योजन है । यह जंबूद्वीप का ३० भाग है । जंबूद्वीप की परिधि व्यवहार नय से ३१६२२८ योजन की है। ३१६२२८x ३० = ६४६६८४ = ९४८६८४० योजन । सर्वाभ्यन्तर मंडल की लम्बाई x चौड़ाई ९९६४० योजन हैं और उसकी परिधि ३१५०८९ योजन है। सर्व बाह्य मंडल की लम्बाई चौड़ाई १००६६० योजन है और उसकी परिधि ३१८३१५ योजन है । दोनों की लम्बाई चौड़ाई का अंतर है-१००६६०-९९६४० = १०२० योजन । १८३ मण्डलों में १०२० योजन लम्बाई चौड़ाई बढ़ती गई है। इसलिए १ मण्डल में १०२०१८३ = ५३५ योजन । सर्वाभ्यन्तर मण्डल से आगे के सारे मण्डलों में ५११ योजन प्रतिमण्डल से लम्बाई चौड़ाई बढ़ती गई है । वैसे ही दोनों मण्डलों की परिधि का अन्तर है, ३१८३१५-३१५०८९ = ३२२६ योजन । प्रत्येक मण्डल में ३२२६ १८३ - १७१६ योजन । सर्वाभ्यन्तर मण्डल से आगे प्रत्येक मण्डल में १८ योजन से कम (१७१११) योजन परिधि बढती जाती है। तापक्षेत्र सूर्य का तापक्षेत्र कितना है ? इसका उत्तर मिलता है-७८३३३० योजन । सूर्य जंबूद्वीप में प्रकाश करता है और लवण समुद्र के कुछ भाग तक भी प्रकाश करता है । मेरु पर्वत से ४५००० योजन जंबू द्वीप की जगती है और उससे आगे लवण समुद्र के ? भाग तक उसका ताप क्षेत्र है । लवण समुद्र २ लाख योजन का है। उसका भाग, २०००० =३३३३३३ योजन । जंबूद्वीप का ४५८०० योजन तथा लवण समुद्र का ३३३३३३ योजन। कुल मिलाकर ४५००० +३३३३३३ =७८३३३३ योजन । ताप क्षेत्र का संस्थान जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर मण्डल में होता है तब उसके तापक्षेत्र का क्या संस्थान होता है ? ताप धोत्र का संस्थान ऊर्ध्वमुख कलंब (धतूरे) के पुष्प के समान होता है, जो भीतर से मेरु पर्वत के पास संकुचित तथा बाहर से लवण समुद्र में चौड़ा है । भीतर वर्तुल और बाहर चौड़ा है। भीतर अंकमुख संस्थान वाला तथा बाहर ऊर्ध्वमुख शकट संस्थान वाला तथा बाहर सर्ववाह्य मण्डल पर सूर्य गति करता है तब उसका संस्थान ऊर्ध्वमुख धतूरे के पुष्प के समान होता है। अन्धकार का संस्थान सर्वाभ्यन्तर बाहु में अन्धकार का संस्थान ऊर्ध्वमुख धतूरे के पुष्प के समान है । बण्ड २३, अंक ४ ४३१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524594
Book TitleTulsi Prajna 1998 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy