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________________ निश्चित तिथि के निश्चित समय होता है । ग्यारह करण हैं-बव, वालव, कोलव, स्त्री विलोचन, गरादि, वाणिज, विष्टि, ये सात करण चर है । शकुनी, चतुष्पाद, नाग और किस्तुघ्न ये चार करण स्थिर हैं । निश्चित तिथियों में ही होते है । शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को रात्रि को बव करण होता है द्वितीया को दिन में ही बालव करण और रात्रि में कोलव करण तृतीया को दिन में स्त्री विलोचन करण और रात्रि में गरादि करण, चतुर्थी को दिन में वणिज करण और रात्रि में विष्टिकरण होता है। पंचमी को दिन में बव करण और रात्रि में बालव करण षष्ठी को दिन में कोलव करण और रात्रि में स्त्री विलोचन करण सप्तमी को दिन में गरादि करण और रात्रि में वणिज करण अष्टमी को दिन मे विष्टि करण और रात्रि में बव करण । नवमी को दिन में बालव करण और रात्रि में कोलव करण दशमी को दिन में स्त्री विलोचन करण और रात्रि में गरादि कारण एकादशमी को दिन में वणिज करण और रात्रि में विष्टि करण द्वादशी को दिन में बव करण और रात्रि में बालव करण त्रयोदशी को दिन में कोलव करण और रात्रि में स्त्री विलोचन करण चतुर्दशी को दिन में गरादि करण और रात्रि में वणिज करण पंचदशी को दिन में विष्टि करण और रात्रि में बव करण कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से अमावश्या तक करण इस प्रकार हैं-प्रतिपदा को दिन को बालव व रात्रि को कोलव । इस प्रकार प्रयोदशी को रात्रि तक क्रमशः करण होते हैं। चतुर्दशी को दिन में विष्टि और रात्रि में शकुनि, अमावस्या को दिन में चतुष्पाद करण और रात्रि में नाग । शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के दिन किंस्तुध्न करण स्थिर रहते हैं । शेष तिथियों में सप्त करण क्रमशः होते रहते हैं। जैन ज्योतिष के अनुसार संवत्सर में प्रथम चंद्रसंवत्सर, अयन में प्रथम दक्षिणायन, ऋतु में प्रथम प्रावट ऋतु, मास में प्रथम श्रावण मास, पक्ष में प्रथम कृष्ण पक्ष, अहोरात्रि में प्रथम दिन, मूहूर्त में प्रथम रुद्र , करण में प्रथम ववकरण और नक्षत्र में प्रथम अभिजित् है। सूर्य का परिभ्रमण क्षेत्र सूर्य की गति करने के १८४ मंडल हैं । ६५ मंडल जंबू द्वीप में हैं जो १८० योजन में हैं। ११९ मंडल लवण समुद्र में हैं जो ३३० योजन में हैं। १८४ मंडलों में सूर्य १८०+३३० = ५१० योजन गति करता है । मेरु पर्वत के सर्वाभ्यन्तर मंडल से लवण समुद्र के सर्वबाह्म मंडल तक सूर्य १८३ अहोरात्रि में १८४ मंडलों में गतिमान रहता है। सर्वाभ्यन्तर मंडल और सर्व बाह्य में सूर्य एक-एक बार जाता है और १८२ मंडलों में दो-दो बार जाता है । जम्बूद्वीप में दो सूर्य हैं। एक सूर्य अहोरात्रि (३० मुहूर्त) में एक मंडल की गति करता है, दूसरा सूर्य भी ३० मुहूर्त में उसी मंडल की गति करता है । इस प्रकार दो सूर्य मिलकर ६० मुहूर्त में एक मंडल की परिक्रमा पूर्ण करते हैं। २३, बंक ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524594
Book TitleTulsi Prajna 1998 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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