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________________ अश्लेषा, मघा, पूर्वफाल्गुनी, उत्तरफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाती, विशाखा, अनुराधा; ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढा, उत्तराषाढा । यह शनिश्चर संवत्सर ३० वर्षों में इन सब नक्षत्रों को स्पर्श कर पूर्ण करता है। मास एक संवत्सर में बारह मास होते हैं। मास के दो प्रकार हैं-लौकिक और लोकोत्तर मास । श्रावण आसोज आदि लोकिक मास है । लोकोत्तर मास के श्रावण आदि से क्रमश: १२ नाम ये हैं-१. अभिनंदित २. प्रतिष्ठा ३. विजय ४. प्रीतिवर्द्धन ५. श्रेयांस ६. शिव ७. शिशिर ८. हेमवत् ९. बसंत १०. कुसुमसंभव ११. निदाघ १२. वनविरोध । पक्ष दिवस और रात्रि एक मास में दो पक्ष होते हैं । कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष । एक पक्ष में पन्द्रह दिन होते हैं। प्रतिपदा दिवस, द्वितीय दिवस, तृतीय दिवस, ..."पंचदश दिवस । इन पन्द्रह दिवसों के क्रमश: नाम हैं-१. पूर्वांग २. सिद्ध मनोरम ३. मनोहर ४. यशभद्र ५. यशोधर ६. सर्वकाम समृद्ध ७. इन्द्रमूर्धाभिषिक्त ८. सौमनस ९. धनञ्जय १०. अर्थ सिद्ध ११. अभिजात १२. अत्यशन २३. शतंजय १४. अग्नि वेष १५. उपशम ।। इन पन्द्रह दिवसों के क्रमश: तिथि नाम हैं---नंदा, भद्रा, जया, तुच्छा (रिक्ता), पूर्णा । एक पक्ष की पन्द्रहरात्रि होती है-प्रतिपद रात्रि, द्वितीया रात्रि......"पञ्चदशी रात्रि । इनके क्रमश: नाम हैं--(१) उत्तमा, (२) सुनक्षत्रा, (३) एलापत्या, (४) यशोधरा, (५) सौमनसा (६) श्रीसंभूता, (७) विजया, (८) वैजयन्ती, (९) जयन्ती, (१०) अपराजिता, (११) इच्छा, (१२) समाहारा, (१३) तेजा और अति तेजा, (१४) देवानन्दा, (१५) निरति । इन पन्द्रह रात्रियों के तिथि नाम क्रमश: ये हैं।" उग्रवती, भोगवती, यशोमती, सर्वसिद्धा, सुखनामा, उग्रवती, भोगवती, यशोमती, सर्वसिद्धा, सुखनामा । उग्रवती, भोगवती, यशोमती, सर्वसिद्धा, सुखनामा । ज्योतिष के ग्रंथों में पन्द्रह तिथियों में प्रतिपदा, द्वितीया आदि नाम प्रचलित हैं। ___आगम में पन्द्रह दिनों की लोकोत्तर संज्ञा, रात्रियों, रात्रियों के नाम तथा उग्रवती आदि रात्रियों के नाम विशेष उल्लिखित हैं। मुहूर्त एक अहोरात्र में ३० मुहूर्त होते हैं । जो इस प्रकार है-रौद्र, श्वेत, मित्र, वायु, सुवीत, अभिचन्द्र, महेन्द्र, बलवान, ब्रह्म, बहुसत्य, ईशान, त्वष्टा, भावितात्मा, वैश्रमण, वरुण, आनन्द, विजय, विश्वसेन, प्रजापत्य, उपशम, गन्धर्व, अग्निवेश, शतवृषभ, आस्मवान्, अमम, ऋणवान्, भौम, वृषभ, सर्वार्थ, राक्षस । करण एक तिथि में दो करण होते हैं। एक करण दिन में होता है तथा दूसरा करण रात्रि में होता है। चर करण क्रमशः तिथियों में चलते रहते हैं। स्थिर करण ४२६ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524594
Book TitleTulsi Prajna 1998 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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