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'अष्टाध्यायी' टीका 'काशिका' की 'पदमञ्जरी' टीका में भी इसी अर्थ की प्रतिध्वनि प्रसक्त होती है।
यथा
"अथेति । अथेत्ययं शब्दोऽधिकारार्थः । अधिकारः प्रस्ताव: प्रारम्भः । तम् अथ शब्दो द्योतयति । शब्दानुशासनमित्येतावत्युच्यमाने सन्देहः स्यात्-कि शब्दानुशासनं प्रारभ्यते ? उत् श्रूयते ? इति (पठ्यते ? श्रूयते वा ? इति) अथ शब्दे तु सति क्रियान्तरव्यवच्छेदेन प्रस्तूयत इति एषः अर्थ: निश्चीयते । विविक्ताः साधवः शब्दाः प्रकृत्यादिविभागतो ज्ञापयन्ते येन तत् शास्त्रम् अत्र शब्दानुशासनम् ।" (पृष्ठ ७)
____किंचित् हेरफेर से 'काशिका' की अन्य टीका न्यास (पृष्ठ ७) में शब्दश: यही व्याख्या दोहरायी गयी है। मात्र शब्दावली का थोड़ा-बहुत हेर-फेर है ।
अतः गुरु-शिष्य परम्परा से आगत अनादि शब्दशास्त्र तथा योगशास्त्र का 'अथ शब्दानुशासनम्' तथा 'अथ योगानुशासनम्' यहां से प्रारम्भ होता है, ऐसा अर्थ ध्वनित होता है।
प्रश्न उपनिषद् (३।७) की ऋचा 'अर्थकयोर्ध्व उदानः पुण्येन पुण्यं लोकं नयति ।' में इसी आरम्भ सूचक अर्थ की प्रतिध्वनि हुई है । मङ्गलसूचक अर्थ
'समाप्तिकामो मङ्गलमाचरेत्' अर्थात् समाप्ति की कामना रखने वाले व्यक्ति को मङ्गल करना चाहिए । इस शिष्टाचार अनुमित श्रुति तथा 'मङ्गलादीनि मङ्गलमध्याणि मङ्गलान्तानि च शास्त्राणि प्रथन्ते' अर्थात् जिन शास्त्रों के आदि, मध्य तथा अन्त में मङ्गल किया जाता है, वे प्रख्यात होते हैं। इस महाभाष्य रूप स्मृति प्रमाण से ग्रन्थ के आदि में मङ्गल अवश्यमेव करना अभीष्टदायक समझा गया है। जिस प्रकार परदेश-गमन करने वाले व्यक्ति के लिए दही और जलपूर्ण कुम्भ दर्शनमात्र एवं मृदङ्गध्वनि श्रवण मात्र से मङ्गलप्रद माने जाते हैं उसी प्रकार ग्रन्थ के आदि में प्रयुक्त 'अथ' शब्द भी मङ्गलवाचक है । कहा भी गया है--
ओङ्कारश्चाथशब्दश्च द्वावेतो ब्रह्मणः पुरा । कण्ठं भित्वा विनिर्याती तस्मान्माङ्गलिकावुभौः ।।
(उद्धृत काशिका टीका पृ. ७) अर्थात् (ॐ) ओङ्कार और अथ शब्द, ये दोनों, सृष्टि के आदि काल में ब्रह्मा के कण्ठ से प्रकट हुए हैं, इस कारण दोनों शब्द मङ्गलवाचक माने जाते हैं।
सांख्यसूत्रकार महर्षि कपिल ने भी 'अथ' को मङ्गलवाचक मानकर 'सांख्यषडाध्यायीसूत्र' का आरम्भ 'अथ त्रिविधदुःखात्यन्तनिवृत्तिः अत्यन्त पुरुषार्थः' सूत्र से किया है । सूत्र के प्रवचनभाष्यकार आचार्य विज्ञानभिक्षु ने भी अपने भाष्य में अथ शब्द को यहां मङ्गल का वाचक ही माना है--
"अथशब्दोऽयमुच्चारणमात्रेण मङ्गल रूपः । अतएव मङ्गलाचरणं शिष्टाचारादिति स्वयमेव पञ्चमाध्याये वक्ष्यति ।".
प्रसंगानुसार 'अनन्तर' अर्थ में प्रयुक्त 'अथ' शब्द की व्याख्या करने के पश्चात्
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* तुलसी प्रज्ञा
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