SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 'पंचसमिति' एक संक्षिप्त निरूपण संगीता सिंघल संयमी आत्मा वाले सत्पुरुषों ने ईर्ष्या, भाषा, एषणा, आदान-निक्षेपण और उत्सर्ग - ये पांच समितियां कही हैं । 'ज्ञानार्णव' में इनका निरूपण निम्न प्रकार से हुआ है। १. ईर्यासमिति प्रासुक मार्ग से दिन में चार हाथ प्रमाण को पीड़ा नहीं देते हुए संयमी का जो गमन है सूर्य का प्रकाश ज्ञानादि में यत्न, प्रायश्चित्त आदि सूत्रों के अनुसार से कैलाश गिरनार आदि यात्रा के चार हाथ प्रमाण भूमि को सूर्य के प्रकाश से देखता मुनि सावधानी से सदा गमन करे ।" 'ज्ञानार्णव' के अनुसार जो मुनि प्रसिद्ध क्षेत्रों को तथा जिन प्रतिमाओं की देखकर अपने कार्य के लिए प्राणियों वह ईर्या समिति है ।" मार्ग, नेत्र, देवता आदि आलम्बन - - इनकी शुद्धता से तथा गमन करते हुए मुनि के ईर्या समिति होती है । कारण गमन करना हो तो ईर्या पथ से आगे की वन्दना के लिये तथा गुरु, आचार्य वा तप से बड़े हों उनकी सेवा करने के लिये गमन करते हो तथा दिन में सूर्य की किरणों से स्पष्ट दीखने वाले बहुत लोग जिसमें गमन करते हों ऐसे मार्ग में दया से आर्द्रचित्त होकर जीवों की रक्षा करता हुआ धीरे-धीरे गमन करे तथा चलने से पहिले ही जिसने युग ( जुड़े ) परिमाण (चार हाथ) मार्ग को भले प्रकार देख लिया हो और प्रसाद रहित हो उसके ईर्या समिति कही गई है । * २. भाषा समिति मूलाचार में झूठ दोष लगाने रूप पैशुन्य, व्यर्थ हंसना, कठोर वचन, परनिन्दा, अपनी प्रशंसा और विकथा इत्यादि वचनों को छोड़कर स्व पर हितकारक वचन बोलना भाषा समिति कही है ।" राजवार्तिक के अनुसार स्व और पर को मोक्ष की ओर ले जाने वाले, स्व पर हितकारक निरर्थक बकवाद रहित मित्र स्फुटार्थं व्यक्ताक्षर और असंदिग्ध वचन बोलना भाषा समिति है । मिथ्याभिमान, असूया, प्रिय भेदक, अल्पसार, शंकित, संभ्रान्त, कषाययुक्त, परिहास युक्त, अयुक्त, असभ्य, निष्ठुर, अधर्म, विधायक, देशकाल विरोधी और चापलूसी आदि वचन दोषों से रहित भाषण तुलसी प्रज्ञा, लाडनूं : खण्ड २३ अंक ३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524593
Book TitleTulsi Prajna 1997 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy