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________________ सिक्के भारतीय सिक्कों जैसे होने के कारण ही चलन में आ गए थे। इन सिक्कों के अग्रभाग पर बायीं ओर मुख किए राजा का धड़ बना है। राजा चौड़े कालर का कोट और गोल पगड़ी वाली अपनी पारम्परिक वेशभूषा में है। पगड़ी के ऊपर मयूर जैसे पक्षी का शीश भी बना है। सबसे बड़े वाले सिक्के पर घड़ी की ७वीं संख्या वाले स्थान से लेकर ५वीं संख्या के स्थान तक भूटानी लिपि में गोलाई में एक अभिलेख है। अभिलेख के अक्षर ब्राह्मी अक्षरों जैसे दिखने के बावजूद मैं उसे उद्वाचित नहीं कर सका। इस सिक्के के पृष्ठ भाग पर दो आड़ी और दो खड़ी रेखाओं के द्वारा सिक्के में नौ फलक बनाए गए हैं। केन्द्रीय फलक में अभिलेख है और शेष आठ फलकों में घड़ी की १ संख्या वाले स्थान से प्रारंभ करके मीन, शंख, पद्म, कलश, स्वस्तिक, सिंह, चक्र और श्रीवत्स के प्रतीक बने हैं। यह स्पष्ट रूप से अष्टमांगलिक चिह्नों का रूपांकन है (चित्र १७) । __ छोटे दोनों सिक्कों के अग्र भाग पर राजा के मुख के एक ओर भूटानी और दूसरी ओर अंग्रेजी अक्षरों में 'भूटान' शब्द अंकित है। सबसे छोटे १० पैसे के समान वाले सिक्के पर प्रचलन वर्ष १९७४ अंग्रेजी अंकों में उत्कीर्ण है। इन दोनों सिक्कों के पृष्ठ भाग पर क्रमश: श्रीवत्स और स्वस्तिक का एक-एक चिह्न बना है। इस चिह्न के नीचे अंग्रेजी अंकों में उन सिक्कों का मान (denomination) क्रमशः २५ और १० की संख्या और उसके एक ओर भूटानी में 'शेटरम' और दूसरी ओर अंग्रेजी के कैपिटल अक्षरों में वही शब्द CHETRUMS अंकित है ।। इस प्रकार भूटान का बड़ा वाला सिक्का अष्टमांगलिक चिह्नों के सामूहिक अंकन का अधुनातन साक्ष्य प्रस्तुत करता है और यह प्रमाणित करता है कि मांगलिक चिह्नों की परम्परा किसी न किसी माध्यम से आज भी प्रचलित है। चित्र-परिचय (चित्र, अलग से आर्ट पेपर पर मुद्रित हैं ।) १-३. जैन आयागपट्ट, मथुरा, कुषाणकाल ४. बावा प्यारा मठ की गुहा सं० 'के' का सिरदल ५. बड़ौदा के एक जैन मन्दिर में रखा कांस्य फलक ६-७. सांची के विशालस्तूप पर उत्कीर्ण अष्ट मांगलिक मालाएं ८. सारनाथ से प्राप्त बौद्ध छत्र ९-११. मथुरा से प्राप्त बौद्ध छत्र १२-१४. बौद्ध पदों पर उत्कीर्ण अष्टमांगलिक चिह्न १५. इलाहाबाद-संग्रहालय का मूठ-आवरण १६. तक्षशिला से प्राप्त सोने की अंगूठी १७. भूटानी सिक्के पर उत्कीर्ण अष्टमांगलिक चिह्न २७४ तुलसी पज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524593
Book TitleTulsi Prajna 1997 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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