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________________ पर बारह मांगलिक चिह्न घड़ी के अंकों के समान पर उत्कीर्ण हैं। इनमें चार तो पत्रांकुर जैसे हैं और शेष आठ हैं अक्षतपात्र, वर्द्धमान, स्वस्तिक, शंख, कलश, श्रीवत्स, मीन-मिथुन और नन्दद्यावर्त (चित्र ८)।" इसी प्रकार मथुरा से मिले प्रथम शती ई० के एक चौकोर छत्र के एक किनारे पर शंख, वर्द्धमान, कलश, श्रीवत्स, अक्षतपात्र, स्वस्तिक, मीन-मिथुन और नन्द्यावर्त पंक्तिबद्ध हैं (चित्र ९)।" मथुरा से मिले और मांगलिक चिह्नों से अलंकृत ऐसे ही गोल छत्रों के कतिपय खण्डित फलक डा० रमेशचन्द्र शर्मा ने प्रकाशित किए हैं (चित्र १०-११)।५ अमरावती, केसनापल्ली और नागार्जुनकोण्ड से प्राप्त द्वितीय-तृतीय शती ई० के बुद्ध पदों पर भी अष्मांगलिक चिह्नों को एक साथ उकेरा गया है। इनमें चक्र, स्वस्तिक श्रीवत्स, नन्द्यावर्त, भद्रासन, मीन-मिथुन, अंकुश, कलश और दर्पण सम्मिलित हैं (चित्र १२-१४)।" अब मांगलिक चिह्नों के सामूहिक अंकन वाली कुछ ऐसी वस्तुओं अथवा उपकरणों का उल्लेख प्रस्तुत है जो किसी धर्म से सम्बन्धित न होकर मात्र लौकिक उपयोग की वस्तुएं हैं। अष्टमांगलिक प्रतीकों से अलंकृत एक तलवार की मुठिया (Handle knot) का कांस्य आवरण कौशाम्बी (इलाहाबाद) से मिला है और सम्प्रति इलाहाबाद-संग्रहालय की अमूल्य निधि है (सं.क्र. Mor. ४१)। सात से० मी. लम्बे और पांच से० मी० अर्द्धव्यास वाले शुंगकालीन (प्रथम शती ई० पू०) इस मूंठ पर मीनध्वज, वैजयन्ती, नन्दद्यावर्त, स्वस्तिक, श्रीवत्स, धनुष-बाण, पद्म और उज्जैन प्रतीक के रूप में अष्टमांगलिक चिह्नों का सामूहिक अंकन है (चित्र १५ क, ख, ग)। तक्षशिला के उत्खनन से सर जॉन मार्शल को सोने की एक अंगुलीयक (अंगूठी) मिली थी जिसके बाहरी घेरे पर नौ उभार हैं और प्रत्येक उभार पर एक मांगलिक चिह्न की आकृति है। नौ में से सात चिह्न स्पष्ट हैं-श्रीवत्स, स्वस्तिक, पप, वज्र, मीन-मिथुन तथा नन्दद्यावर्त के दो प्रतीक । शेष दो चिह्न पुष्प की आकृति के हैं जिनकी पहचान संदिग्ध है (चित्र १६)। दो, तीन, चार अथवा पांच की संख्या में मांगलिक चिह्न कतिपय पंचमार्क और जनजातीय सिक्कों पर अंकित अवश्य मिलते हैं, परन्तु इससे अधिक संख्या में समग्र रूप से उनका अंकन सिक्कों पर विरल है। तमिलनाडु के प्रारम्भिक पाण्ड्य शासकों के कुछ हस्ति प्रकार के सिक्कों पर अष्टमांगलिक चिह्न एक साथ अंकित पाए गए हैं। तीसरी-चौथी शती ई० के इन चौकोर तांबे के सिक्कों पर ठप्पे के द्वारा अग्र भाग पर हाथी की आकृति के ऊपर एक पंक्ति में वृक्ष, नन्द्यावर्त, कलश, चक्र, श्रीवत्स, दर्पण और चक्र बने हैं और आठवां चिह्न या तो हाथी के आगे त्रिशूल में बंधे अंकुश को माने अथवा सिक्के के पृष्ठ भाग पर बने मीन को।" कुछ वर्ष पहले मुझे भूटान के तीन वर्तमान सिक्के मिले। इनमें दो गोल थे और भारत के ५० पैसे तथा २५ पैसे वाले सिक्कों के आकार के थे और तीसरा भारत के १० पैसे वाले सिक्के जैसा लहरियादार गोल आकृति का था। वस्तुतः ये भूटानी २०३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524593
Book TitleTulsi Prajna 1997 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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