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अंक १ की ही आकृति से सम्भव है । अंग्रेजी उर्दू के अंक 1 एक तो ठूठ सा लगता है। परन्तु खेद है कि अब टाइप में अंक १ की आकृति विकृत कर दी है (१), आकृति छप रही है जिसका उठा हुए पैर गायब है केवल टांग रह गई है। इसे सुधारना होगा। एक अंक को पहले वाली आकृति मानव आकृति १ ही छापना समाचार पत्रों, प्रकाशनों का दायित्व है । अंक ९ एवं ६ में आकृति अन्तर जैसा नहीं छप रहा है, वह भ्रम उत्पादक है । एक और नौ की आकृति ठीक करनी होगी।
दो की २, तीन की ३......."आदि आकृतियां कहां से टपक पड़ी। मैंने तो . का ही सहारा लेकर सन्तोष कर लिया है • को मध्य से कटने पर चूल्हे की आकृति C आ जाती है जो गह में लगा होता है । यह चल्हा ही गृहस्थी का प्रतीक है। न्यायाधीश दण्डनायक कहलाता है। कचहरी, राजदरवार आदि सब दण्डधारी होते हैं । दण्ड डण्डा शासन अनुशासन (Authority discipline) का प्रतीक है। इन्हीं दो आकृतियों C और I से देवनागरी और अंग्रेजी के समस्त अंक और अक्षर सुगमता सरलता से शिशुओं को लिखना सिखाया जा सकता है । देवनागरी के अक्षर अंग्रेजी के बड़े अक्षरों से सीखने में काफी कठिन हैं । A अज्ञर को केवल डण्डे से I,A,A करके तीन भागों में लिखना अति सरल है । B को डण्डा I फिर चूल्हा b फिर दूसरा चूल्हा B लगाना कितना सरल होता है । बड़ी बीबी के दो घर तो छोटी बीबी के एक घर कह कर मनोरंजन भी होता है। देवनागरी का प्रथम अक्षर अ ही शिशु को प्रथम दिन ही कठिनाई में डाल देता है । परन्तु एक चूल्हे पर दूसरा छूल्हा 01, फिर डण्डे लगा दो उ,उा,अ सरलता से लिखना सिखाया जा सकता है । देवनागरी के अंक लिखना तो
और सरल है । चूल्हे पर पूंछ लगा दो २ बन गया चूल्हे पर चूल्हा लगाकर पूंछ लगा दोa,३ तीन बन गया। चुल्हे पर चूल्हा चढ़ा दो U,४ चार बन गया । समझदार शिक्षक ज़रा से प्रयत्न से सरलता भर देता है । इस प्रकार चूल्हे और डण्डे से गणित तथा साहित्य की दृढ़ नींव डाली जा सकती है। यही चूल्हा गृहस्थी तथा संस्कृति शब्दों में भी उपस्थित है।
मानव सब योनियों में श्रेष्ठ बुद्धिमान, शक्तिमान् है । उसमें हाथी, शेर आदि सब को अपने अधीन कर लिया है । अंक १ की आकृति मानव आकृति है । जिसका सिर बड़ा, सीना चौड़ा, उभरा, पैर उठा मानो चलने को तैयार कर्म करने में चुस्त (man in action) है । इस आकृति १ का संरक्षण करना होगा, यह मानव संस्कृति की धरोहर है।
अथर्ववेद मन्त्र (५-१५) कहता है १ से १०, २ से २०, ३ से ३०......"१५ से १५........६० से ६०० आदि में १० का रूप है। गिनती १० से १०० पर ही छोड़ दी जाती है । भारतीय संस्कृति में योग, और दान की बहुत महिमा है। इन संख्याओं में योग से १०+१=११, २०=२=२२, ३०+३=३३ ....... १५.+१५= १६५......."६००+६०-६६......."से ११,२२,३३.......१६५...""६६०......" में ११ का पहाड़ा है। इसी प्रकार दान करने पर १०-१-९, २०-२=१८, ३०-३ २७,.......१५०-१५-१३५.......६००----६.+५४०....... में ९ का पहाड़ा आता है।
खण्ड २३, अंक ३
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