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अंक-विद्या के चमत्कार
१ को वै पुरुषस्य प्रतिमा
.प्रताप सिंह
अंक गणित की प्रत्येक प्रारम्भिक गिनती, पहाड़े की पोथी में १ से ९ अंक ही लिखे मिलते हैं । कहीं पर भी शून्य ० की चर्चा नहीं है । यद्यपि ० का उपयोग १ के साथ करके १० बना लिया जाता है । इस परिपाटी पर ११ से ९९ बना । फिर ९९ वें के फेर में पड़े रहने के बाद पुन: ० का सहारा लेकर १० पर उसे लगाकर १०० बना देते हैं । हर पोथी में गिनती १०० तक ही होती है । परन्तु होती अनन्त है, कहीं सीमा नहीं है।
अथर्ववेद मन्त्र (५-१६) पर एक वृषः, द्विवषः, ""दशवृष: कहकर अंकों को १ से १० तक सीमित कर दिया है । अथर्ववेद का दूसरा मन्त्र (१५-४) परमात्मा को एक वृत्तम्, न द्वितीयो, न तृतीयो...."न दश वृत्तम् कहकर, अंकों को भी दस मानने का आदेश है । अजुर्वेद मन्त्र (१८-२४) में योग द्वारा १+२=३, ३+२=५७ ५+२=७..........."आदि करके विषम संख्याएं (odd Numbers) १, ३,५,७,....... तथा २+२=४, ४+२=६,६+२=८,........ सम संख्याएं आदि बताकर १,२,३. ४,५,६,७,८"....'को प्राकृत अंक (Natural Numders) कहा है । अरब देश इन्हें हिन्दसा कहते हैं क्योंकि यह वहां हिन्द-भारत से पहुंचे हैं।
गिनती की सारिणी प्रत्येक प्रारम्भिक पोथी में लिखी होती है । देखने पर स्पष्ट होता है कि प्रत्येक सारिणी में अंक ९ की ही सर्वव्यापकता होती है। जिधर से देखो उधर से ९ ही ९ है । प्रथम स्थंभ में तो १ से ९ स्पष्ट है दूसरे स्थंभ के दाहिने बार्श्व में भी १ से ९ है। इस प्रकार हर स्थंभ के दाहिने पार्व में भी ऐसा ही है। किसी भी क्षतिज रेखा के हर अंक के बाएं पार्श्व में शुरू से अन्त तक १ से ९ हैं। जैसे ८ की रेखा में हर संख्या के बाएं पार्श्व में १,२,३....९ ही है । अन्तिम क्षैतिज रेखा १०, २०,३०....हैं । यहां पर भी शून्य के साथ ९ ही है। इसी प्रकार ऊपर से नीचे, बाएं से दाएं जिधर देखो उधर ९ ही ९ है।
ऋग्वेद मन्त्र (१७-२) १,१०,१००,१००.........१०६ तक संख्याओं के नाम दिए हैं । १० को परार्द्ध कहा है जिसमें १ पर १९ शून्य लगे हैं । इस गणना में प्रत्येक संख्या अपने से पूर्व संख्या से दस गुणा है । इस कारण से इस पद्धति को दशमलव प्रणाली कहते हैं।
तुलसी प्रज्ञा, लाडनूं : अंक २३ खण्ड २
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