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________________ वे राग-रागनियों से सम्बन्धित है । उनका सम्बन्ध उस भू-भाग से है, जहां पेड़-पौधे विशेष तौर पर पाये जाते हैं । प्रकृति वातावरण एवं ऋतुओं आदि के अनुसार धोरों की धरती पर स्थित पेड़-पौधों का मूल रूप से सम्बन्ध मरूधरा के स्वर एवं लय ताल से है । इस भू-भाग का मानव जिस लोक-संस्कृति से संबन्धित होकर जी रहा है, उस धरती का संगीत जीव जन्य और जड़-जन्य के रोम-रोम एवं कण-कण में व्याप्त होना स्वाभाविक है शास्त्रीय संगीत के विद्वानों के मतानुसार पेड़-पौधों में स्वरों का निवास निम्न प्रकार हैआम खजूर केला जामुन दाडिम द्राक्षा युनाग रे ग म प धनि निवास वृक्ष- चूत्तखर्जूरकदली जंम्बीरं दाडिमी तथा द्राक्षायुभागवृक्षाच्च षडजारीवोप्रकीर्तिताः ॥भ। म.।। मरूधरा की लोक-धुनें जब तक अपने मूल रूप में प्रचलित हैं, तभी तक यहां के अचेतन और चेतन पदार्थ शक्तिशाली बने रहेंगे । इस विषय पर ध्यान देने की अति आवश्यकता है। ध्यान रहे पेड़-पौधों को जो राग एवं धुन प्रिय होते है, उन्हीं स्वर-लहरियों पर संस-कवियों ने अपने गीतों की रचना की है। सा डा० जयचन्द शर्मा श्री संगीत भारती, रानी बाजार, बीकानेर-३३४०.१ २४४ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524592
Book TitleTulsi Prajna 1997 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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