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छोड़कर "रघुवंश' में ही दण्डकारण्य, जन-स्थान तथा पंचवटी की चर्चा तो की है, किन्तु रामगिरि की क्यों नहीं की ? ) इस सन्देह का उत्तर यों प्राप्त किया जा सकता है कि वह संबद्ध स्थान बाद में, पश्चात्काल में, राम के नाम से जुड़ कर लोक में प्रसिद्ध हो गया होगा ।
इस संदर्भ में सर्वाधिक विचारणीय बिन्दु है कि रामगिरि ऐसा - पहाड़ या पहाड़ी होना चाहिए जहां, जैसा पूर्व कथित है- - राम ने सीता- लक्ष्मण के साथ अयोध्या छोड़ने के अनन्तर कुछ काल तक अवश्य निवास किया हो ।
ऐसे स्थल दो ही हो सकते हैं : चित्रकूट तथा पंचवटी । इनमें रामसीता का सम्बन्ध चित्रकूट से ही अपेक्षया अधिकालिक रहा है, पंचवटी में तो अल्पकाल में ही सीता का अपहरण हो गया था । अब आप वाल्मीकि की ओर तनिक
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लक्ष्मण और सीता के साथ श्रीराम प्रयाग में गंगा-यमुना-संगम के समीप भरद्वाज आश्रम में जाते हैं और उनका सत्कार करने के बाद भारद्वाज उन्हें चित्रकूट पर्वत पर ठहरने का आदेश देते हैं और इसी सातत्य में चित्रकूट की महिमा तथा प्राकृतिक शोभा का भी वर्णन करते हैं । वे चित्रकूट को महर्षियों द्वारा सेवित, सुन्दर तथा पवित्र पर्वत बताते हैं
" महर्षिसेवितः पुण्यपर्वतः शुभदर्शनः ।"
वहां बहुत से ऋषि, जिनके सिर के बाल वृद्धावस्था के कारण खोपड़ी की भांति सफेद हो गये थे, तपस्या द्वारा सैकड़ों वर्षों तक विहार करने के पश्चात् स्वर्गलोक को चले गये हैं
'ऋषयस्तत्र बहवो विहृत्य शरदां शतम् । तपसा दिवमारूढाः कपालशिरसा सह ॥'
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खण्ड २३, अंक २
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चित्रकूट में पहुंचकर श्रीरामादि वाल्मीकि का दर्शन करते हैं और राम के आदेश लक्ष्मण पर्णशाला का निर्माण करते हैं । भरत की चित्रकूट यात्रा के व्यवधान के बाद, श्रीराम द्वारा सीता को चित्रकूट की छटा दिखने तथा मन्दाकिनी की शोभा निर्दिष्ट करने का वर्णन आदिकवि ने किया है। उसने स्पष्ट कहा है कि श्रीराम वह पर्वत अत्यन्त प्रिय लगता था और वे वहां बहुत दिनों से रह रहे थे“दीर्घकालोषितस्तस्मिन् गिरौ गिरिवरप्रियः । "
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सीता के प्रति चित्रकूट की प्राकृतिक सुरम्यता का वर्णन करते हुए श्रीराम कहते
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- ( अयो० वाल्मीकि०, ५४।२८ - ३१ )
"शाखावसक्तान् खङ्गाश्च प्रवराण्यम्बराणि च । पश्य विद्याधरस्त्रीणां क्रीडोद्देशान मनोरमान् ॥ जलप्रपातैरुद्धे दैनिष्पन्दैश्च क्वचित् क्वचिता । स्रवदिगर्भात्ययं शैलः स्रवन्मद इव द्विपः ॥
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