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जीव के ऊपर जाने के दो रास्ते हैं---जीव ग्यारहवें में भी जा सकता है तथा बारहवें गुणस्थान में भी । ग्यारहवें गुणास्थान से जीव नियम से नीचे गिरता है, जबकि वारहवें गुणस्थानवी जीव तेरहवें फिर चौदहवें गुणस्थान में चढ़ता हुआ मोक्ष पद की प्राप्ति करता है।
उपर्युक्त कथन सामान्य है । पहले गुणस्थान तथा चौथे गुणस्थान में कुछ विशेष है। चौथे गुणस्थान को तीन भागों में बांटा गया है-औपशमिक सम्यक्दृष्टि क्षायिक सम्यकदष्टि तथा क्षायोपशमिक सम्यकदष्टि । इनका विवरण परिशिष्ट में दिया गया है। पहले गुणस्थान-मिथ्यादृष्टि के दो भेद हैं अनादि मिथ्यादृष्टि तथा सादि मिथ्यादृष्टि । जो व्यक्ति अनादि काल से मिथ्या में पड़ा हुआ है, वह अनादि मिथ्यादृष्टि है तथा जो जीव ऊपर के चौथे आदि गुणस्थान से गिरकर पहले गुणस्थान में आया है, वह सादि मिथ्यादृष्टि है । अनादि मिथ्यादृष्टि चौथे, पांचवें तथा सातवें गुणस्थान में कर्मों का उपशम करके ही पहुंच सकता है, अतः वह औपशमिक सम्यक् दृष्टि हो सकता है। क्षायिक- सम्यक् दृष्टि (चौथे गुणस्थान) वाला जीव कभी नीचे के गुणस्थान में नहीं गिरता है । इन सब बातों सहित गुणस्थान में चढ़ने उतरने के क्रम को क्षुल्लक श्री जिनेन्द्र वर्णीजी ने तालिका रूप में बहुत अच्छी तरह प्रस्तुत किया है। यह तालिका निम्न प्रकार है
तालिका : गुणस्थान में आरोहण-अवरोहण का क्रम | नंबर गुणस्थान । आरोहण क्रम | अवरोहण क्रम | विशेष
| ४ मिथ्याष्टि अनादि
उपशम सम्यक्त्व
सहित ४, ५, ७ सादि
३,४,५,७ सासादन मिश्र असंयत उपशम सम्यक दृष्टि
सासादन पूर्वक १ क्षायिक क्षायोपशमिक ,
३,१ संयतासंयत
४,३,२,१ प्रमत्त संयत
५,४,३,२,१ अप्रमत्त संयत
मृत्यु समय अपूर्वकरण
में ४ अनिवत्तिकरण सूक्ष्म सांपराय उपशांत कषाय क्षीण कषाय
सयोग केवली | १४ | अयोग केवली । सिद्ध
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.खण्ड २३, अंक २
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