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________________ ज्यों-ज्यों गुणस्थानों में आरोहण होता जाता है, कर्म बन्ध के पूर्व-पूर्व कारणों का विनाश होता जाता है। सबसेप हले बंध का मूल कारण मिथ्यात्व (दर्शन मोह) दूर होता है । उसके पश्चात् क्रमशः अविरति, प्रमाद और कषाय (चारित्र मोह) दूर होते हैं। अन्तिम गुणस्थान में बन्ध का अन्तिम कारण योग भी दूर हो जाता है । बन्ध के कारणों के दूर होने पर जीव कर्तबन्ध से मुक्त हो जाता है तथा मोक्ष प्राप्त कर लेता है। पहले गुणस्थान से तीसरे गुणस्थान तक मिथ्यात्व न्यूनाधिक रूप में रहता है। छठे गुणस्थान से पूर्व प्रमाद का अस्तित्व है, अत: प्रमत्त है । पहले चार गुणस्थान में औदयिक, पारिणामिक, क्षायोपशमिक और औपशमिक भाव होते हैं । ये चारों दर्शन मोह की अपेक्षा हैं । प्रथम चार गुणस्थानों में चारित्र नहीं है। इनके आगे पांचवे, छठे तथा सातवें गुणस्थानों में क्षायोपशमिक भाव हैं। यहां उपशम क्षय या क्षयोपशम की अपेक्षा चारित्र मोह की प्रधानता से कथन किया गया है । आठवें गुणस्थान में चारित्र मोह की प्रधानता से कथन है । इसमें उपशम तथा क्षपक दो श्रेणियां होती हैं । गुणस्थान के आरोहण-अवरोहणका क्रम जीव गुणस्थानों में क्रमशः चढ़ता चला जाता है, सर्वथा ऐसा नहीं है । अपनी आत्मा के अच्छे-बुरे भावों के हिसाब से वह चढ़ भी सकता है तथा उतर भी सकता है। लेकिन गुणस्थानों में चढ़ने तथा उतरने के कुछ नियम हैं । किसी अमुक गुणस्थानवर्ती जीव कुछ गुणस्थानों में आरोहण कर सकता है तथा कुछ में अवरोहण । जीब आरोहण करेगा या अवरोहण, यह उससे बद्ध-कर्मों या छूटने वाले कर्मों पर निर्भर करेगा। गुणस्थानों के चढ़ने-उतरने के क्रम को याद करने कराने की दृष्टि से कई तरीके अपनाये जाते रहे हैं। एक अमुक गुणस्थान से जीव अन्य कितने गुणस्थानों में जा सकता है, इसे अंकों की सहायता से याद रखने का प्रचलन रहा है। ये अंक हैं४१२, ५५६, इसके बाद २२२ । वायें से पहले स्थान पर ४ लिखा है, अतः पहले गुणस्थान से जीव चार गुणस्थानों में से किसी एक में जा सकता है, ये हैं तीसरा, चौथा, पांचवां तथा सातवां गुणस्थान । दूसरे स्थान पर १ है, अतः दूसरे गुणस्थान से जीव मात्र एक गुणस्थान में जा सकता है, वह है पहला गुणस्थान । तीसरे स्थान पर २ है, अतः तीसरे गुणस्थान से जीव दो में से किसी एक में जा सकता है, ये हैं--पहला तथा चौथा गुणस्थान । चौथे गुणस्थान पर ५ है, अत: चौथे गुणस्थान से पांच में से किसी एक में जा सकता है, ये हैं-पहला, दूसरा, तीसरा, पांचवां तथा सातवां गुणस्थान । पांचवें स्थान पर पुनः ५ है, अतः पांचवें गणास्थान से जीव पांच में से किसी एक गुणस्थान में जा सकता है, ये हैं --- पहला, दूसरा, तीसरा, चौथा तथा सातवां गुणस्थान । छठे स्थान पर ६ है, अतः छठे गुणस्थान से जीव छह में से किसी एक गुणस्थान में जा सकता है, ये हैं पहले से पांचवें तक तथा सातवां गुणस्थान। इसके आगे तीन बार दो, दो लिखा है, अत: सातवें, आठवें, तथा नौवें गुणास्थान से जीव दो स्थानों में से किसी एक में जा सकता है, एक अपने से ऊपर तथा एक अपने से नीचे । दसवें गुणस्थान से जीव नीचे गिरकर नौवें में जा सकता है । दसवें गुणस्थान से २१२ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524592
Book TitleTulsi Prajna 1997 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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