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________________ शताधिक ग्रंथों का उपयोग हआ है। इसके दो परिशिष्ट हैं-अवशिष्ट देशी शब्द तथा देशी धातु चयनिका। इसका सम्पादन मुनि दुलहराजजी ने सन् १९८८ में किया था। (५) आगम वनस्पति कोश ---- जैन आगमों में वनस्पतियों के नाम प्रचुरता से प्राप्त हैं। टीका काल में उनकी पहचान विस्मृत-सी हो गई थी। कुछेक वनस्पतियों की पहचान विपरीत अर्थ में की जा रही थी। प्रस्तुत कोश में लगभग ४५० वनस्पतियों का सचित्र प्रस्तुतीकरण और उनकी सप्रमाण विज्ञप्ति मुनि श्रीचन्दजी 'कमल' ने की है। यह जैन आगम वनस्पति का पहला कोश है, जिसमें प्राचीन वनस्पतियों का आधुनिक परिचय प्राप्त होता है । इसका प्रकाशन वर्ष है-सन् १९९६ । (ये पांचों कोश जैन विश्व भारती, लाडनूं से प्रकाशित हैं) (६-८) लेश्याकोश, क्रियाकोश, योगकोश इन तीनों के संपादक हैं—स्व० मोहनलालजी बांठिया तथा श्रीचन्दजी चोरड़िया। संपादक द्वय ने लेश्या, क्रिया और योग के बिखरे संदर्भो को जैन आगम साहित्य से एकत्रित कर उनके सुसंयोजित रूप को लेश्याकोश, क्रियाकोश और योगकोश के रूप में प्रकाशित किया है। सारा विषय उपबिंदुओं में विभक्त है तथा हिन्दी भाषा के अनुवाद से अन्वित है । लेश्याकोश सन् १९६६ में, क्रियाकोश १९६९ में जैन दर्शन समिति, कलकत्ता से प्रकाशित हुए। (९) श्री भिक्षु आगम विषय कोश--- प्रस्तुत कोश में पांच आगम-आवश्यक, दशवकालिक, उत्तराध्ययन, नन्दी तथा अनुयोगद्वार और इनके व्याख्या ग्रंथों का समवतार किया गया है। इस लघुकाय समवतार में भी विषयों की विविधता बहुल परिणाम में है। इस कोश में १७५ विषयों का संग्रहण है। तत्वदर्शन, आचार-शास्त्र, इतिहास आदि अनेक दृष्टियों का इसमें समावेश है। प्रस्तुत कोश विश्वकोश की परिकल्पना से निर्मित नहीं है। फिर भी विषय की विविधता और विस्तार की दृष्टि से यह विश्वकोश जैसा बन गया है। इसमें संग्रहित सामग्री पर अनेक कोणों से मीमांसा की जा सकती है । मीमांसा की दृष्टि से यह कोश विशाल आकार ले सकता है । प्रस्तुत कोश में द्रव्यानुयोग, चरणकरणानुयोग, गणितानुयोग और धर्मकथानुयोग-इन चारों का समावेश है। तीन अनुयोग का संग्रह मूल में है। धर्मकथा का संकेत-संग्रह परिशिष्ट में है। यह कोश जैन दर्शन में गंभीर चिन्तन, अतीन्द्रिय दृष्टि और सूक्ष्म सत्यों की खोज का प्रतिनिधित्व ग्रंथ बन गया है। इस ग्रंथ का संपादन साध्वी विमलप्रज्ञाजी, साध्वी सिद्धप्रज्ञाजी ने मुनि श्री दुलहराजजी तथा डॉ० सत्यरंजन बनर्जी के निर्देशन में किया है। १९२ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524592
Book TitleTulsi Prajna 1997 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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