SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पठन-पाठन का कार्य विवरण पूज्य गुरुदेव श्री तुलसी के शासनकाल में तेरापंथ धर्म संघ में प्राकृत भाषा संबंधित जो विशेष कार्य हुआ उसे अध्ययन की दृष्टि से चार भागों में बांटा जा सकता है - (१) आगम संपादन (२) व्याकरण साहित्य (३) कोश निर्माण (४) स्वतंत्र साहित्य निर्माण-(पद्य और गद्य)। १. आगम संपादन गणाधिपति श्री तुलसी के वाचना प्रमुखत्व में जैनागमों के संपादन और अनुवाद का अभिनव उपक्रम प्रारंभ हुआ। यह संपादन कार्य सहज नहीं है। शब्दों के अर्थ में अनेक प्रकार के उत्कर्ष-अपकर्ष आ चुके हैं। देवद्धिगणी द्वारा अपनाई गई आगमों के संक्षेपीकरण की शैली, परंपरा भेद, लिपिगत समस्यायें, मूलपाठ और व्याख्या का सम्मिश्रण, व्याख्या का पाठ रूप में परिवर्तन आदि अनेक कारण ऐसे थे जिनके कारण अनेक नये क्षेपक हो गए। अनेक स्थलों पर पाठों का विलोप हो गया। इन समग्र कठिनाइयों को पार करते हुए आगमों के पाठ संशोधन में लगभग बीस वर्ष लगे। तीस आगमों का संशोधित संस्करण-अंगसुत्ताणि भाग १,२,३, उवंगसुत्ताणि भाग १,२ तथा नवसुत्ताणि के अन्तर्गत-प्रकाशित हो चुका है पाठ संशोधन की योजना में नियुक्ति, भाष्य और चूणि—इन सबका पाठ संशोधन सम्मिलित है। दश नियुक्तियों का (आचारांग नियुक्ति, सूत्रकृतांग नियुक्ति, दशवकालिक नियुक्ति, उत्तराध्ययन नियुक्ति, दशाश्रुतस्कन्ध नियुक्ति, पिंड नियुक्ति, व्यवहार नियुक्ति, निशीथ नियुक्ति) पाठ संशोधन का कार्य भी प्रायः पूर्ण हो चुका है । व्यवहार भाष्य भी प्रकाशित हो चुका है । पाठ-संशोधन के अतिरिक्त आगमों का टिप्पण सहित हिन्दी अनुवाद और संपादन का कार्य भी द्रुत गति से चल रहा है। इस दृष्टि से संपादित होकर अब तक जो ग्रंथ प्रकाशित हो चुके हैं, वे ये हैं-दसवेआलियं, उत्तरज्झयणाणि भाग १,२, आयारो, सूयगडो भाग १,२, ठाणं, समवाओ, अणुओगद्दाराई, भगवई भाग (अध्ययन १,२)। वर्तमान में भगवई भाग २ (अध्ययन ३ से ७) तथा नन्दी प्रकाशनाधीन है। भगवई के आठवें, नौवें शतक का अनुवाद और टिप्पण भी तैयार हो चुका है। इन आगम ग्रंथों के अतिरिक्त दशवकालिक एक समीक्षात्मक अध्ययन तथा उत्तराध्ययन एक समीक्षात्मक अध्ययन --- ये दो अनुशीलन ग्रंथ भी प्रकाशित हुए हैं । धर्मप्रज्ञप्ति भाग १ (दशवकालिक वर्गीकृत) तथा धर्मप्रज्ञप्ति भाग २ (उत्तराध्ययन वर्गीकृत) भी प्रकाश में आ चुके हैं। इस प्रकार सुधी अध्येताओं के लिये अध्ययन और शोध की पर्याप्त सामग्री उपलब्ध हो चुकी है। खण्ड २३, अंक २ १८७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524592
Book TitleTulsi Prajna 1997 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy