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________________ कायोत्सर्ग के लाभ व्यक्तित्व के सभी स्तर प्रमाणित होते हैं । सकारात्मक परिवर्तन परिलक्षित होते हैं । आकलन हुआ है । कायोत्सर्ग की प्रक्रिया अध्यात्म की अत्यन्त शक्तिशाली प्रक्रिया है । इससे शरीर, मन, भाव और चेतना में शास्त्रों में इन परिणामों का बहुत सुन्दर आवश्यक निर्युक्ति के अनुसार कायोत्सर्ग से देह और मति की जड़ता नष्ट होती है । सुख-दुःख को सहने की शक्ति बढ़ती है । अनुप्रेक्षा की भूमिका बनती है । एकाग्रचित्त से शुद्ध ध्यान करने का अवसर मिलता है ।" व्यवहार भाष्य से भी इनकी पुष्टि होती है ।" कायोत्सर्ग करने से कर्म क्षीण होते हैं । *" अनगार धर्मामृत के अनुसार निग्रन्थता की सिद्धि, जीवन की आशा का अन्त, निर्भयता, रागादि दोषों की क्षीणता तथा रत्नत्रय के अभ्यास में तत्परता कायोत्सर्ग के परिणाम है ।" उत्तराध्ययन के अनुसार कायोत्सर्ग से प्रायश्चित्तोचित कार्यों का विशोधन, मानसिक व भावनात्मक हलकापन व प्रशस्त ध्यान में लीनता बढ़ती है । " ५१ व्यवहार भाष्य के अनुसार कायोत्सर्ग से भेद विज्ञान होता है । १ जैसे तलवार म्यान में ही मेरा यह शरीर अलग है, करता है । जह नाम असी कोसे, अण्णो कोसे असी वि खलु अण्णे । इमे अन्नो देहो, अन्नो जीवो त्ति मण्णंति || सन्दर्भ : १. प्रेक्षाध्यान पत्रिका अप्रैल, २. आवश्यक निर्युक्ति १४६० ३. आवश्यक निर्युक्ति १४६५ ४. उत्ताराध्ययन ३० । ३६ ५. मूलाचार २८ ६. नियमसार ७० ७. भगवती आराधना विजयोदया टीका ११८ । १६१ ८. ९. मूलाचार ६७३ १०. ( क ) मूलाचार ६६५ १५२ रहती है, पर तलवार अलग है, म्यान अलग है, वैसे जीव अलग है, कायोत्सर्ग करने वाला ऐसा अनुभव (क) राजवार्तिक ६ | २४|११ (ख) चरित्रसार ५६ ॥३ १९९७ पृ० ४ Jain Education International (ख) धर्मामृत अनगार पृ० ६११ ११. (क) धर्मामृत अनगार ८।१२५ (ख) आवश्यक निर्युक्ति १५६६-१५६६ For Private & Personal Use Only तुलसी प्रशा www.jainelibrary.org
SR No.524592
Book TitleTulsi Prajna 1997 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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