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________________ कायोत्सर्ग में ध्यान ध्यान से पूर्व कायोत्सर्ग किया जाता है अर्थात कायिक स्थिरता का प्रयोग किया जाता है । कायिक स्थिरता के पश्चात् कायोत्सर्ग में धर्म ध्यान और शुक्ल ध्यान का प्रयोग किया जाता है।" कायोत्सर्ग में श्वास की स्थिति व्यवहार भाष्य में कहा गया है कि कायिक, वाचिक और मानसिक चेष्टा को स्थगित कर कायिक ध्यान (कायोत्सर्ग) में प्रवृत्त होने पर श्वास सूक्ष्म हो जाता है।" श्वास के सूक्ष्म, शान्त, दीर्घ व लयबद्ध होने पर कायोत्सर्ग घटित होता है । शरीर का परानुकम्पीनाड़ी तंत्र अर्थात् शिथिलीकरण तन्त्र सक्रिय हो जाता है। अतः शास्त्रों में कायोत्सर्ग की विधि के अन्तर्गत दीर्घश्वास का प्रयोग सलक्ष्य प्राप्त होता है । तथा उसके साथ धर्म, ध्यान व शुक्लध्यान का प्रयोग किया जाता है ।" दीर्घश्वास में एक उच्छ्वास का कालमान है-पद्य का एक चरण का स्मरण । इस प्रकार कायोत्सर्ग में काल-प्रमाण जाना जाता है।" पद्यों में कौनसे पद्यों का उच्चारण किया जाए ? इसके समाधान में "चतुर्विशति स्तव" व "नमस्कार महामंत्र" की पूरी विधि प्राप्त होती है। कायोत्सर्ग में श्वास के साथ चतुर्विशतिस्तव का ध्यान चतुर्विशांति स्तव में सात पद्य है । एक पद्य में चार चरण। एक श्वासोच्छ्वास में एक चरण का ध्यान किया जाता है। कायोत्सर्ग काल में सातवें श्लोक के प्रथम चरण "चन्देसु निम्मलमरा" तक ध्यान किया जाता है । इस प्रकार चतुर्विशतिस्तव का ध्यान पच्चीस उच्छ्वासों में सम्पन्न होता है । नमस्कार महामंत्र का ध्यान अमित गति-श्रावकाचार के अनुसार देवसिक कायोत्सर्ग में १०८ तथा रात्रिक कायोत्सर्ग में ५४ उच्छ्वास तक ध्यान किया जाता है और अन्य कायोत्सर्ग में २७ उच्छ्वास तक । २७ उच्छ्वासों में नमस्कार महामंत्र की नौ आवृत्तियां की जाती है । अर्थात् तीन उच्छ्वासों में एक नमस्कार मंत्र पर ध्यान किया जाता है ।" इसके अतिरिक्त कायोत्सर्ग के अन्तर्गत ध्यान में दसवैकालिक सूत्र के अध्ययन के पद्यों का भी उल्लेख प्राप्त होता है ।" इससे यह भी अनुमान निकलता है कि प्राचीनकाल में स्वाध्याय, ध्यान में श्वास के साथ ही रहा होगा। कायोत्सर्ग: अवधि कायोत्सर्ग का उत्कृष्ट कालमान एक वर्ष और न्यूनतम अन्तमुहूर्त है । खण्ड २३, अंक २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524592
Book TitleTulsi Prajna 1997 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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