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________________ जैन परम्परा में कायोत्सर्ग - मुनि धर्मश कायोत्सर्ग शास्त्रीय शब्द है । वर्तमान में इसके लिए शिथिलीकरण, शवासन या रिलेक्सेशन जैसे शब्द प्रयोग में आते हैं। गणाधिपति श्री तुलसी के अनुसार ये शब्द कायोत्सर्ग का सम्पूर्ण प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते।' कायोत्सर्ग में काय का शिथिलीकरण तो होता ही है, जागरूकता एवं स्थिरता के साथ शरीर और चैतन्य के भेद का अनुभव भी होता है। इसके प्रथम चरण में कायिक स्थिरता या शिथिलीकरण की अनुभूति होती है एवं इसकी चरम परिणति शरीर और चैतन्य के भेद-बोध में होती है । यह आत्म-बोध की प्रक्रिया है । कायोत्सर्ग दो शब्दों से बना है-काया+उत्सर्ग । काया के तेरह पर्यायवाची शब्द है-काय, शरीर, देह, बोन्दि, चय, उवचय, संघात, उच्छ्य, समुच्छ्य, कलेवर, भस्त्रा, तनु और पाणु ।' उत्सगं के ग्यारह पर्यायवाची शब्द है-उत्सर्ग, व्युत्सर्जन, उज्झन, अवकिरण, छर्दन, विवेक, वर्जन, त्यजन्, उन्मोचना, परिशांतना, शासना।' कायोत्सर्ग का शाब्दिक अर्थ है - काया का त्याग । __ काया का त्याग मृत्यु के समय होता है। मृत्यु के पूर्व इसका त्याग कैसे सम्भव है ? इसका समाधान दो दिशाओं से प्राप्त होता है। काया के स्थान का एक अर्थ है-काया की ऐच्छिक प्रवृत्ति का त्याग एवं दूसरा ममत्व का विसर्जन ।' उत्तराध्ययन के अनुसार काया की चेष्टा का त्याग कायोत्सर्ग है । यह आन्तरिक तप का छठा भेद है। इसे देवसिक रात्रिक आदि प्रतिक्रमण के समय निश्चय प्रमाण एवं काल के लिए किया जाता है। उस समय अर्हतों के गुणों का चिन्तन करते हुए शरीर की प्रवृत्ति का त्याग किया जाता है ।" इसका दूसरा नाम काय-गुप्ति भी है।' शरीर के प्रति ममत्व, आसक्ति, राग भाव आदि के विसर्जन से शरीर का त्याग सिद्ध होता है। अतः ममत्व विसर्जन कायोत्सर्ग है । परिमित काल के लिए ममत्व विसर्जन का अभ्यास करना कायोत्सर्ग है। कर्म बन्धन के दो हेतु हैं-योग (प्रवृत्ति) एवं कषाय (ममत्व)। योगों की स्थिरता एवं कषायों का अल्पीकरण कर्म-मुक्ति का मार्ग है। कायोत्सर्ग उसका साधन है। कायोत्सर्ग योगों की स्थिरता व ममत्व के विसर्जन का अभ्यास है। इससे चैतन्य के प्रति जागरूकता बढ़ती है। चैतन्य का जागरण होता है । आत्म-साक्षात्कार होता है। खण्ड २३, अंक २ १७७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524592
Book TitleTulsi Prajna 1997 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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