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________________ ऐसा शाब्दबोध होता है। वैयाकरणों के अनुसार प्रकृत स्पल से 'उत्पत्त्यनुकूलव्यापारः' ऐसा तथा मीमांसकों के अनुसार 'उत्पत्त्यनुकूला भावना' ऐसा शाब्दबोध होता है। ___नैयायिकों के अनुसार 'द्वेष्टि' 'यतते' 'जानाति' से क्रमशः 'द्वेषाश्रयत्वाश्रयः', 'यत्नाश्रयत्वाश्रयः' तथा 'ज्ञानाश्रयत्वाश्रयः' एवं 'इच्छति' से 'इच्छाश्रयत्वाश्रयः' ऐसा शाब्दबोध होता है ।१५ वैयाकरणों के अनुसार प्रकृत वाक्यस्थलों से क्रमशः 'देषानुकूलव्यापारः, यत्नानुकूलव्यापारः, ज्ञानानुकूलव्यापारः, इच्छानुकूलव्यापारः' ऐसा तथा मीमांसकों के अनुसार 'द्वेषानुकूला भावना, यत्नानुकूला भावना, ज्ञानानुकूला भावना, इच्छानुकूला भावना' ऐसा शाब्दबोध होता है। नैयायिकों के अनुसार 'रथो गच्छति' यहां गम् धातु से उत्तरदेशसंयोगानुकूल व्यापार की स्मृति होती है । आख्यात से लक्षणा द्वारा आश्रयत्व की स्मृति होती है। उस आश्रयता के साथ आश्रयत्व सम्बन्ध है। अतः इस वाक्य से उत्तरदेशसंयोगानुकूलव्यापाराश्रयत्वाश्रयो रथः । १५ ऐसा शाब्दबोध होता है । वैयाकरणों के अनुसार प्रकृत वाक्यस्थल से 'रथवृत्तिगमनानुकूलवर्तमानकालिकव्यापारः' ऐसा तथा मीमांसकों के अनुसार 'रथवृत्तिगमनानुकूला वर्तमानकालिका भावना' ऐसा शाब्दबोध होता है। नयायिकों के अनुसार 'त्यजति' यहां त्यज् धातु से पूर्वदेश के विभाग के अनुकूल व्यापार की स्मृति होती है। आख्यात से शक्ति द्वारा कृति की स्मृति होती है । अनुकूलता संबंध से पूर्वदेश विभागानुकूलक्रिया में अन्वय कृति का होता है। तत्पश्चात् आश्रयत्व संबंध है । अतः इस वाक्य से पूर्वदेश विभागानुकूल क्रियानुकूलकृत्याश्रयः । १० ऐसा शाब्दबोध होता है । वैयाकरणों के अनुसार प्रकृत वाक्यस्थल से 'वर्तमानकालिकपूर्वदेशविभागानुकूलव्यापार:' ऐसा तथा मीमांसकों के अनुसार 'वर्तमानकालिका पूर्वदेशविभागानुकूला भावना' ऐसा शाब्दबोध होता है। ___ नैयायिकों के अनुसार 'पतति' यहां पत् धातु से अधःसंयोगानुकूल क्रिया की स्मति होती है । आख्यात से कृति की स्मृति होती है। यहां आश्रयत्व संबंध है । अतः इस वाक्य से अधःसंयोगानुकूलक्रियानुकूलकृत्याश्रयः ।।८ ऐसा शाब्दबोध होता है। यहां ध्यातव्य यह है कि जैसे 'ग्रामं गच्छति' वाक्यस्थल में ग्राम में कर्मता विद्यमान है वैसे 'पत्रं भूमी पतति' वाक्यस्थल में कर्मता नहीं आयेगी, क्योंकि पत् धातु द्वारा अधोदेश के संयोग के अनुकूल परिस्पन्दरूप व्यापार की स्मृति से तद्घटक संयोग के अधोदेश से अवच्छिन्न होने के कारण उस संयोग की विषयता में अधिकरण अवच्छिन्न है। अत: 'पत्रं भूमि पतति' की आपत्ति नहीं जा सकती । वैयाकरणों के अनुसार पतति से 'अधोदेशसंयोगानुकूलवर्तमानकालिकव्यापारः' ऐसा तथा मीमांसकों के अनुसार 'अधोदेशसंयोगानुकूला वर्तमानकालिका भावना' ऐसा शाब्दबोध होता है। __ नैयायिकों के अनुसार 'नश्यति घटः' यहां नश् धातु से नाश की स्मृति होती तुलसी प्रक्षा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524591
Book TitleTulsi Prajna 1997 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size9 MB
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