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सामान्य शांत श्वसन में हम एक बार में लगभग ५०० मि ली. अर्थात् आधा लीटर हवा लेते हैं और इतनी ही छोड़ते है परन्तु वायुकोशों तक लगभग ३५० मिली. वायु ही पहुंच पाती है बाकी ऊपर के श्वसन अंगों में ही रह जाती है। चूंकि एक मिनट में हम लगभग १२ बार श्वसन करते हैं अतः प्रति मिनट लगभग ६००० मि. ली. वायु का आदान प्रदान होता है।
यदि बहुत गहरा लम्बा श्वास लें तो एक बार में लगभग ३६०० मि. ली. अर्थात् ६-७ गुना वायु को भरा जा सकता है । यदि प्रश्वास बलपूर्वक किया जाए तो और भी अधिक वायु को अन्दर खींचा जा सकता है । परंतु बलपूर्वक किए गए प्रश्वास से फेफड़ों व अन्य अंगों पर कार्यभार बढ़ जाता है एवं इसके लिए अधिक ऊर्जा की आवश्यकता भी होती है।
जो श्वसन तंत्र हमें प्रकृति ने दिया है उसकी कार्य कुशलता एवं दक्षता दो कारणों से घटी हुई है । एक गुरुत्व बल एवं दूसरा पृष्ठ तनाव । गुरुत्व बल के कारण रक्त का संचरण फेफड़े के निचले भागों में अधिक होता है जबकि वायु का आदान प्रदान ऊपरी हिस्सों में अधिक होता है । दूसरे, वायुकोशों के अन्दर विद्यमान एक विशेष द्रव के के पृष्ठ तनाव के कारण प्रश्वास के समय वे पूरी तरह पिचक नहीं पाते। इससे पूरी पुरानी हवा बाहर निकलकर पूरी नई हवा प्रवेश नहीं कर पाती है ।
प्राणायाम इन दोनों समस्याओं का उपयुक्त समाधान देता है । अर्थात् एक तो फेफड़ों पर अतिरिक्त कार्यभार डाले बिना संतुलित मात्रा में ऑक्सीजन की पूर्ति एवं ऊर्जा संरक्षण तथा दूसरे, श्वसन तंत्र की कुल कार्य कुशलता एवं दक्षता में वृद्धि । इसका कारण यह है कि प्राणायाम के अभ्यास से एक तो प्रति मिनट श्वसन दर में कमी आ जाती है । जहां समान्यतः हम १२ बार श्वास लेते हैं वहीं अभ्यास के बाद यह संख्या आधी से भी कम हो जाती है । दूसरे श्वास गहरा और लम्बा हो जाने के कारण एक बार में ही अधिक वायु का आदान-प्रदान होता है । सही श्वसन का अभ्यास व व्यायाम की कमी के अलावा श्वसन की कुछ गलत आदतें भी हैं जो श्वसन तन्त्र की क्षमता को बुरी तरह प्रभावित करती है। श्वसन को सामान्य आदतें
हमारे समाज में सामान्यतः श्वसन की कुल तीन आदतें पाई जाती हैं। प्रथम "डायफ्रामेटिक श्वसन' के नाम से जानी जाती है । इसकी पहचान यह है कि श्वास लेते समय तो डायफ्राम के नीचे जाने से पेट आगे की ओर फलना चाहिए तथा प्रश्वास के समय इसका उल्टा होने से पेट सिकुड़ना चाहिए । इसमें फेफड़ों का फैलाव निचले गुरुत्व-निर्भर क्षेत्रों में ही अधिक होता है। इससे ऑक्सीजन की आदान-प्रदान की क्रिया अधिक कुशलता के साथ सम्पन्न होती है। अतः रह श्वसन की सबसे दक्ष विधि मानी जाती है । बच्चे केवल इसी प्रकार से श्वास लेते हैं क्योंकि उनमें डायफ्राम के अलावा अन्य मांस पेशियों का विकास बाद में होता है।
इस आदत का एक अन्य शारीरिक स्वास्थ्य लाभ भी है। इसमें डायफाम की गति के कारण यकृत, गुर्दे, प्लीहा, पित्ताशय एवं बड़ी आंत को, प्रत्येक श्वास के साथ, एक
खण्ड २३, अंक १
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