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हुआ है जिससे
स्वाभाविक
श्वसन प्रक्रिया में बाधा पहुंची है। परिणामस्वरूप जहां बचपन में सभी लोग सही हैं वहीं बड़े होते होते अधिकांश की श्वसन प्रकिया विकृत एवं संकुचित हो जाती है । विकृत श्वसन जहां शरीर के अन्य अवयवों की कार्य प्रणाली पर नकारात्मक प्रभाव डालता है वहीं संकुचित श्वसन से शरीर की ऊर्जा ग्रहण क्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है । श्वसनतन्त्र एवं उसकी कार्यप्रणाली
मोटे तौर पर श्वसन तन्त्र के मुख्य अंग नासिका, श्वासनली तथा फेफड़े हैं । वायु का प्रवेश नासिका द्वारा से होता है । नासिका में स्थित बाल एवं नमी, धूलकण, रोग कीटाणु आदि को अन्दर जाने से रोकते हैं । नासिका गुहा में ही वायु को शरीर के अनुकूल नमी व ताप भी मिल जाते हैं । कण्ठ से गुजरकर वायु श्वासनली में प्रवेश करती है । १२ से १४ सेमी लम्बी श्वासनली अंत में दाएं बाएं दो भागों में विभक्त हो जाती है और दोनों फेफड़ों में खुलती है। फेफड़ों के अन्दर प्रवेश करने के बाद भी ये दोनों नलियां अनेक छोटी छोटी श्वासनलियों में विभक्त होती चली जाती है । वृक्ष की शाखाओं की तरह लगभग १५ बार प्रशाखित होने तथा सूक्ष्मदर्शी आकार ग्रहण करने के बाद ये अत्यन्त सूक्ष्म वायु कोशों में खुलती हैं। फेफड़े वास्तव में ऐसे करोडों वायु कोशों से बने है । इन कोशों के चारों ओर महीन रक्त कोशिकाओं का जाल बिछा रहता है ।
इन केशिकाओं में शरीर से जो रक्त आता है उसके गैसीय मिश्रण में कार्बनडायऑक्साइड सी ओ का आधिक्त व ऑक्सीजन ओ' की कमी होती है । यह असंतुलन शरीर की कोशिकाओं में ऊर्जा उत्पादन का परिणाम होता है । इस असंतुलन से रक्तकोशिकाओं में इन गैसों के दाब तथा वायु कोशों में आई इन गैसों के दाब में अन्तर आ जाता है । इस दाबान्तर के कारण, वायुकोशों की सूक्ष्म झिल्ली के आरपार, वायु से रक्त में ऑक्सीजन तथा रक्त से वायु में कार्बनडाय ऑक्साइड का विसरण हो जाता है । इसके उपरान्त कार्बनडायऑक्सइड आधिक्य वाली वायुकोशों की वायु, प्रश्वास के दौरान नासिका से बाहर निकल जाती है तो दूसरी ओर यहां से ऑक्सीकृत रक्त ऑक्सीजन लेकर शरीर की प्रत्येक कोशिकाओं तक पहुंचता है | कोशिका में यह ऑक्सीजन भोजन के अववयों जैसे कार्बोहाइड्रेट, वसा आदि के साथ क्रिया कर ऊर्जा उत्पन्न करती है । इस क्रिया में कार्बनडायऑक्साइड बनती है जो रक्त में घुलकर उसके साथ पुनः फेफड़ों में पहुंचकर उपरोक्त रीति से नासाछिद्रों द्वारा शरीर से बाहर निकल जाती है । सार यह है कि श्वसन का मुख्य कार्य ऑक्सीजन का लेना व कार्बनडाय ऑक्साइड का छोड़ना है । श्वसन से प्राप्त ऑक्सीजन उस ऊर्जा के उत्पादन की अपरिहार्य आवश्यकता है जिसके बिना हमारे शरीर का कोई भी अंग कार्य कर ही नहीं सकता चाहे वह मस्तिष्क की मानसिक चेतना ही क्यों न हो क्योंकि विचार मात्र के लिए भी ऊर्जा तो चाहिए ही, इसलिए कहा गया है - " श्वशन ही जीवन हैं।"
इस तरह यदि हम श्वसन क्रिया के विस्तृत अध्ययन में उतरें तो पाएंगे कि श्वसन सिर्फ एक शारीरिक प्रक्रिया ही नहीं, एक जैव रसायन प्रणाली तथा एक ऊर्जा तंत्र भी है जो हमारी भावनात्मक स्थिति विशेष की अभिव्यक्ति का माध्यम भी
खण्ड २३, अंक १
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