SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सन्दर्भ १. त्रिविधं तच्च विज्ञेयं नात्ययोगे समासतः समान-शब्दं विभ्रष्टं देशीगतमथापि च । नाट् शास्त्र १७॥२१३ देसी भाषा उभय तदुज्जल । कवि दुक्कर धज-सद्द सिलायल ॥ १२।४ पउण चरिउ, पालित एव रइया तित्थरओ तह व देसिवयणेहि णायेण तरंगवइ कथा विचित्ता य विडला य ।। पादलिप्तः तरंगवती कथा: हिंदी साहित्य का बृहत् इतिहास--प्रथम भाग सं० राजबली पाण्डेय पृ. ३१५ २. अपभ्रंश साहित्य- डा. हरिवंश कोछड़ पृ० ३४ : महाकवि पुष्पदन्त डा० राजनारायण पाण्डेय पृ० १८ ३. हिंदी साहित्य का इतिहास-आ० रामचन्द्र शुक्ल भूमिका पृ० ३ ४. हिंदी साहित्य का आदिकाल-डा० हजारीप्रसाद द्विवेदी पृ० ११ ५. डा० नामवरसिंह -- हिंदी के विकास में अपभ्रंश का योगदान पृ० १७५-१७६ ६. पउमचरिउ भाग-१- भूमिका (सम्पादक भायाणी) पृ० १६ ७. हिंदी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास- डा० रामकुमार वर्मा प० ११३ ८. महाकवि पुष्पदन्त : डा० राजनारयण पाण्डेय पृ० ९९ ९. अपभ्रंश साहित्य- डा. हरिवंश कोछड़ पृ० ११६ ---डा. नीलम जैन ___C/o श्री यू० के० जैन सण्ट्रल बैंक ऑफ इण्डिया कोर्ट रोड़ सहारनपुर-२४७००१ तुलसी प्रमा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524591
Book TitleTulsi Prajna 1997 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy