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एक पुष्पदन्त विरचित महापुराण (१०वीं शती ई०) गुणभद्र परम्परा में परिगणित किया जाता है ।
स्वयंभू अपभ्रंश के आदिकवि हैं । इनकी तीन रचनायें पउमचरिय, रिट्ठनेमि चरिउ और स्वयंभू छन्द उपलब्ध होती हैं। इनका पउमचरिउ अपभ्रंश का रामकथा विषयक प्रथम विशालकाय महाकाव्य है । यह जैन रामायण है। इसमें ९० संधियां, १२६९ कड़वक तणा १२००० श्लोक है । यह पांच कांडों विद्याधर कांड, अयोध्या कांड, सुन्दरकांड, युद्धकांड और उत्तरकांड में विभक्त हैं। स्वयंभू के पउमचरिउ की रचना प्रौढ़ व प्रांजल है । इतनी सर्वगुण सम्पन्न काव्य रचना भाषा की प्रारम्भिक स्थिति में सम्भव नहीं है । अत: ऐसा ज्ञात होता है कि स्वयंभू से पूर्व अपभ्रंश काव्यपरम्परा उन्नत थी। स्वयंभू जन भाषा के कवि थे, इसी से उन्होंने अपनी भाषा को देशीभाषा कहा है ।
स्वयंभू के बाद अपभ्रंश के द्वितीय महाकवि पुष्पदन्त हैं। इनकी "तिसदिट्ठ महापुरिस गुणालंकार, "णायकुमार चरिउ" एवं "जसहर चरिउ" तीन कृतियां प्राप्त होती हैं । तिसहिापुरिस नामक रचना रामकथा से सम्बन्धित है । इस पौराणिक महाकाव्य में ६३ शलाका पुरुषों का वर्णन है, इसके द्वितीय भाग उत्तरपुराण में ६९ से ७९ सन्धियों में रामकथा वर्णित है, द्वितीय रचना का उद्देश्य पंचमी उपवास का फल बतलाया है । जसहर चरिउ ( यशोधर चरित) कवि की अन्तिम रचना है ।" इसकी कथा अत्यन्त लोकप्रिय है, कवि के एक अन्य कोश ग्रन्थ का उल्लेख मिलता है पर यह रचना अनुपलब्ध है ।
अपभ्रंश में सर्वाधिक रचना करने वाले कवि रघू हैं इनके २५ ग्रन्थों का उल्लेख मिलता है । पउमपुराण ( १५वीं शती ० ई० ) अपभ्रंश भाषा में जैन रामकथा परम्परा को आगे बढ़ाने वाला अन्तिम ग्रंथ है । यह ग्रंथ अप्रकाशित है, जिसकी हस्तलिखित प्रतियां आमेर शास्त्र भण्डार में सुरक्षित हैं। इसमें रामकथा का सामान्य कथन है । इनकी अन्य कृतियां सुकौशल चरित, आत्म सम्बोध काव्य, धनकुमार चरित्र, मेघेश्वर चरित्र, श्रीपाल चरित्र, सन्मतिजिन चरित्र आदि हैं । इनकी भी हस्तलिखित कृतियां आमेर भण्डार में उपलब्ध हैं ।
खण्ड २३, अंक १
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