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अनेक विदेशी विद्वानों को भी जिनमें डा० बेंडर, डा० आल्सडोर्फ आदि को सम्पादन व संशोधन में मार्ग निदेशन दिया। वि० सं० २०१७ में श्री महावीर जैन विद्यालय में आगम-साहित्य के संशोधन एवं सम्पादन का काम आप श्री के प्रेरणा से शुरू हुआ और कई आगम ग्रन्थ प्रकाशित कराये।
पूण्य श्लोक मुनि पुण्यविजयजी का मुख्य का कार्य जैसलमेर के ज्ञान भण्डारों का जीर्णोद्धार, संशोधन, सम्पादन और व्यवस्था का है। राजस्थान की भयंकर गर्मी मेंलू के थपेड़ों में वि० सं० २००६ में डेढ वर्ष का प्रवास कर अद्वितीय कार्य कियावह युगों-युगों तक याद किया जायेगा । मृत प्रायः ताड़पत्रीय व अन्य हस्तलिखित ग्रन्थों को सन्जीवनी देकर ऐसा भगीरथ कार्य किया कि आगामी सैकड़ों वर्षों तक वे सुरक्षित रह सकेंगे । समूचे ज्ञान भण्डारों को एकत्र कर सूची बनाई । उनके इस जैसलमेर प्रवास में मैं भी पूज्य मामाजी अगरचन्दजी नाहटा, भाईजी भंवरलालजी नाहटा, प्रो० नरोत्तमदासजी स्वामी, आचार्य बदरीप्रसादजी साकरिया के साथ जैसलमेर गया था। दस दिन ठहर कर मुनिश्री के कार्य को देखा था । इस महान ज्ञान-यज्ञ की आहूति में सेठ कस्तूर भाई लाल भाई, श्री जैन श्वेताम्बर कान्फरेंस, बम्बई का अपूर्व सहयोग था।
आपश्री समुदाय-गच्छ भेद से ऊपर थे । वि० सं० २००७ में बीकानेर चातुर्मास में खरतरगच्छीय साधु मुनि विनयसागरजी को अपने पास रखकर -- उनको विद्वानआगम ज्ञाता बनाया जो आजकल महोपाध्याय श्री विनयसागरजी के नाम से प्रसिद्ध हैं -प्राकृत भारती, अकादमी, जयपुर के निदेशक हैं । आपको पद का किंचित मात्र भी लोभ नहीं था । वि० सं० २०१० में बम्बई संघ और जैनाचार्य श्री विजयसमुद्रविजय जी ने आपको आचार्यश्री की पदवी लेने का बहुत आग्रह किया, किंतु आपने स्वीकार नहीं किया । फिर भी बड़ोदा संघ ने आपको 'आगम प्रभाकर' पद से सम्मानित किया वि० सं० २०२८ में आचार्यश्री विजय समुद्रसूरिजी ने 'श्रुतशील वारिधि' पद से अलंकृत किया।
युगवीर आचार्यश्री विजयवल्लभसूरिजी महाराज साहब की जन्म शताब्दी महोत्सव की सार्थक योजना बनाने के लिये बम्बई संघ की विनती से आपको वि० सं० २०२४ व २०२६ के चातुर्मास बम्बई में ही करने पड़े । शताब्दी महोत्सव सम्पन्न होने के बाद आप श्री की इच्छा अहमदाबाद की तरफ विहार करने की इच्छा थी - किंतु भवितव्यता कुछ और थी-महाराजश्री की यकायक तबीयत बिगड़ गई, बम्बई में ही वि० सं० २०२७ जेठवदी ६ (गुजराती) ता० १४ जून १९७१ ई० सन् में सोमवार को रात्रि के ८.११ बजे स्वर्ग सिधार गये। ___आपने अपनी दीक्षा-पर्याय के ६२ चातुर्मास विभिन्न नगरों में विशेषकर गुजरात क्षेत्र में बीताए । राजस्थान में तो सिर्फ जैसलमेर और बीकानेर में दो ही चातुर्मास किये । आपने कुल ७ आगम ग्रन्थों का, ३७ विभिन्न ग्रन्थों का, जिनकी सूची इस प्रकार है संपादन-प्रकाशन किया
तुलसी प्रज्ञा
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