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________________ लगाते हैं कि उस समय पर्दे का प्रचलन था किन्तु आगमकालीन युग के उन सन्दर्भो का पूर्वापर प्रसंग के साथ सूक्ष्म दृष्टि से विश्लेषण किया जाए तो वास्तविकता सहज ही प्रकट हो जाती हैं। नायाधम्मकहाओ के एक प्रसंग के अनुसार महारानी धारिणी द्वारा देखे गए स्वप्नों का फल जानने के लिए स्वप्न-पाठकों को आमंत्रित किया जाता है। स्वप्न पाठकों द्वारा स्वप्न फल बताने के समय जब महारानी राज्यसभा में उपस्थित होती है तो उसके आसन के सामने एक यवनिका लगा दी जाती है।" महारानी उस यवनिका की ओट में बैठकर स्वप्न-फल के तथ्यों का ज्ञान करती है । यवनिका मात्र को पर्दे का प्रतीक मान लेना व्यावहारिक नहीं होगा। क्योंकि राज्यसभा की मानमर्यादा और शिष्टता के पालन के लिए उसका प्रयोग किया जाता था। उस समय राज्यसभा में स्त्रियों की उपस्थिति नहीं होती थी। अतः उस मर्यादा का पालन करने के लिए यवनिका को काम में लिया जाता था। एक अन्य प्रसंग के अनुसार किसी नारी विशेष के वस्त्रों के लिए नाक की हवा से उड़ने का कथन है । इनको पर्दे का प्रतीक मान लिया गया है। क्योंकि पर्दा मुख पर रहता है और जब श्वास लिया अथवा छोड़ा जाता है, तब वह हिलता है। नासिका की हवा से कपड़े के हिलने मात्र से उसे पर्दे का प्रचलन मानना वास्तविकता नहीं होगी। उक्त सन्दर्भ में वस्त्र के लिए नाक से उड़ने का कथन एक साहित्यिक विशेषण है जो उसकी गरिमा को व्यक्त करता है। इस प्रकार के कुछ अन्य प्रसंग भी हो सकते हैं किन्तु यदि उनके मूल संदर्भ को खोजा जाए तो वास्तविकता का सम्यग् बोध हो सकता है। अतः यह मानने में कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए कि आगमकालीन युग में स्त्रियां पर्दे का प्रयोग नहीं करती थी। सन्दर्भ : 8. The position of women in Hindu civilization p. 166 २. अभिज्ञान शाकुन्तलम् ५।१४ ३. Vedic Index 1.474 ४. ऋग्वेद संहिता १०८५।३३ : सुमंगलीरियं वधूरिमा समेत पश्यत । सौभाग्यमस्यदत्वायाऽथास्तंवि परतेन ॥ __ -अथर्ववेद संहिता २।३६।१, १४।१११२१ ५. निरुक्त ३।५१ : तं तत्र या पुत्रा यापतिका सारो हति। तां तत्राक्षराहघ्नन्ति सा रिक्थं लभते। ६. पाणिनि व्याकरण ३।२।३६ ७. वाल्मीकि रामायण २।३३।८ : या न शक्या पुरा द्रष्टुं भूतैराकाशगैरपि । तामद्य सीतां पश्यन्ति राजमार्गगताः जनाः ।। तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524589
Book TitleTulsi Prajna 1996 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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