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________________ स्वयंवर की प्रथा थी । नारी को स्वतंत्रता थी कि वह स्वयंवर मंडप में किसी भी व्यक्ति का वरण कर सके । वेद वाक्य के अनुसार विवाह के समय उपस्थित लोग कन्या को देखते थे और उसे आशीर्वाद देते थे। उस समय की सामाजिक परिस्थिति के अनुसार स्त्रियां न्याय प्राप्त करने के लिए न्यायालय में भी जाती थी।' इस प्रकार अन्य अनेक सन्दर्भ प्राप्त होते हैं, जिनसे स्पष्ट होता है कि वैदिक काल में नारी के लिए पर्दा आवश्यक नहीं था । पाणिनि ने अपने संस्कृत व्याकरण में 'असूयं पश्या' शब्द का उल्लेख किया है । ' कुछ विद्वानों का मत है कि यह उस समय प्रचलित पर्दा प्रथा या उससे मिलती-जुलती किसी अन्य प्रथा का सूचक है । 'असूयं पश्या' शब्द का प्रयोग उस नारी के लिए होता था जो सूर्य के द्वारा भी नहीं देखी जा सकी हो । बहुधा यह शब्द राजा की रानी के लिए प्रयुक्त होता था । रामायण और महाभारत में भी ऐसे अनेक स्थल और सन्दर्भ प्राप्त होते हैं जिनसे यह स्पष्ट होता है कि उस समय विशिष्ट कुल की नारियों का सामान्य जनता के बीच आना स्थल पर महर्षि वाल्मीकि ने अधिक उत्तम नहीं माना जाता था । कहा है- 'आज सड़क पर चलते हुए को देख रहे हैं जो पहले आकाशगामी प्राणियों के द्वारा भी नहीं वाल्मीकि ने एक अन्य स्थल पर कहा है कि में स्त्रियों का अदर्शन दोषकारक नहीं है ।" स्त्रियों को सभा कि पाणिनि एवं नारी वैदिक कालीन नारी की तरह सामान्य छोड़कर विचरण नहीं करती थी तथा राज्यनहीं देख पाते थे । महाभारत में कहा है कि प्राचीन काल में लोग विवाहित आदि में नहीं ले जाते थे । इन सन्दर्भों और तथ्यों से स्पष्ट होता है रामायण और महाभारत के काल में मनुष्यों के बीच कुछ विशेष अवसरों को परिवार की स्त्रियों को साधारण मनुष्य आगम एवं त्रिपिटक साहित्य के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि उस समय नारी के लिए पर्दे का प्रचलन नहीं था । तथ्य यह है कि उस समय पुरुष अपने अन्तःपुर के सौन्दर्य पर गौरव अनुभव करता था और यदा-कदा उसका प्रदर्शन भी करता था ।" पुत्री के रूप भी नारी किसी व्यक्ति से पर्दा नहीं रखती थी एवं धर्म गुरु व साधुओं को भिक्षा देने आदि कार्यों में भी वह अन्य पारिवारिक व्यक्तियों के समान ही भाग लेती थी । " उस समय व्यक्ति-स्वातंत्र्य का सम्मान होता था । व्यक्ति की इच्छा और भावना का आदर किया जाता था । यही कारण है कि आगम और त्रिपिटक साहित्य में कन्या के विवाह के विषय में आग्रह सूचक नियमों का सर्वथा अभाव है । ऐसी कन्याओं के माता-पिता जो अपनी पुत्री का विवाह करने में असमर्थ रहते थे धार्मिक दृष्टि से भयभीत नहीं हुआ करते थे । कन्याएं भी विवाह करने या न करने के विषय में अपने को स्वतंत्र समझती थी तथा आजीवन अविवाहित रहने में भी किसी प्रकार के सामाजिक आक्षेप का अनुभव नहीं करती थी । " विवाह योग्य पुत्री भी अपने प्रस्तावित पति के सम्मुख किसी प्रकार के पर्दे के बिना ही अपना अभिमत व्यक्त करने के लिए स्वतंत्र थी । उस समय पुत्री से उसके १२ 'तुलसी प्रज्ञा Jain Education International रामायण में एक लोग उस सीता देखी गई थी । विपत्ति, युद्ध, स्वयंवर, यज्ञ तथा विवाह For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524589
Book TitleTulsi Prajna 1996 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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