SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 71
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जब राजस्थानी भाषा की 'बातों' पर विचार किया जाता है तो उनकी भाषाशैली सामने आती है । बातें राजस्थान की बोलचाल की भाषा में लिखी गई हैं । असल में वे मौखिक परम्परा से चली आ रही राजस्थानी लोक-कथाएं ही हैं, जिनको संवार - सजाकर लिखित रूप में प्रस्तुत कर दिया गया है। यही कारण है कि प्रायः लिखित बातों में लेखकों के नाम नहीं हैं और उनको लोक-सम्पत्ति ही माना गया है । इतना ही नहीं, एक ही बात के छोटे और बड़े कई रूप भी मिलते हैं, जिनमें घटनाओं का विवरण बढ़ा दिया गया है और भाषा-शैली में भी विभिन्नता है । साथ ही यह भी स्थिति है कि एक ही पात्र अनेक 'बातों' में उपस्थित दृष्टिगोचर होता है । यह सब राजस्थानी जनता के इतिहास-बोध का द्योतन है । राजस्थानी 'बात - साहित्य' में ऐतिहासिक सामग्री प्रचुर मात्रा में समाविष्ट है । यही कारण है कि अनेक 'बातों' को यहां की 'ख्यातों' (इतिहासों) में भी स्थान दिया गया है। राजस्थानी बातों पर ध्यान देने से यह भी सहज ही प्रकट होता है कि इनमें अनेकशः खड़ी बोली और राजस्थानी का मिश्रण हुआ है । इस प्रकार की मिश्रित भाषा का प्रयोग सामान्यतया नाथ-जोगी पात्रों के मुख से करवाया गया है । इनके साथ ही मुसलमान पात्रों के साथ भी ऐसा ही हुआ है । एक ही 'बात' में जहां लेखक का वक्तव्य एवं अन्य पात्रों का वचन राजस्थानी में है, वहीं यदि कोई मुसलमान पात्र है तो वह खड़ी बोली- मिश्रित राजस्थानी बोलता है । इस विषय में आगे कुछ विस्तार से सोदाहरण चर्चा की जाती है । सर्वप्रथम मुसलमान पात्रों की वाणी देखिए १. सो इण दोहे री किहीं बादशाह नुं चुगली कीवी, "जे केशरीसिंहजी कुंवर चारण पास किस तरह कहावता है ।" तह बादशाह चारण नुं बुलवाय फुरमायो, “तैने केसरिये कुंवर कूं किस तरह कहा ?" वह चार वारेक ती नटियो पण बादसाह फेर गाढ कर पूछो, तद चारण बांह चाढ दूहो कहियो, सो बादसाह सुण घणां माणसां रै सुणतां फरमाई, जे उस रोज तो केसरिया ऐसा हीज हुवा ।" तो सगला देखता ही रह गया । चुगलखोरां रो मूंह फीको पड़ गयौ फेर एक दिन बकसी ₹ नायब बादशाह सूं मालूम कीवी, “जे केसरिया कुंवर गैर-हाजिर ।" तो बादसाह सुण फरमाई, "केसरिया हाजर था, उस रोज तुम न थे ।" वह नायब फीको मूंह कर खड़ो रहियो । ( पदमसिंघ री बात ) | २. हि अठै बेगम पातिसाह सूं अरज कीधी, "मैं बीरमदे सोनिगरा ने कबूल कीधो । मेरा ब्याह - नका करो। मेरा खावंद सिरपोस जालोर का धणी है ।" पातिसाह की, "बेगम, ऊ तो हिन्दू है । मेरी तरफ सूं गाढ भांति-भांति सूं करिसूं । पिण मेला तो खुदाय के हाथ है ।" ऐ वातां करि पातिसाहजी अंबखास तखत विराजिया खान सुलतान दरीखाने मिलिया । कानड़देजी पण आया | जर्दै पातिसाहजी रावजी ने घणो आदर सूं सगाविध सूं बतला - वण कीधी ने कह्यो, “रावजी, हमारी लड़की तमारा लड़का के दीधी । तुलसी प्रज्ञा २२५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524589
Book TitleTulsi Prajna 1996 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy